मिलन
एक कदम बढ़ाओ तो
वह हज़ार कदमों से चलकर आता है
आवाज़ लगाने भर की देर है
भेज देता है देवदूत सा कोई जन
जिसका सान्निध्य
शीतल जल और अग्नि एक साथ है
जो जला डालता है सारे बंधन
और मिटा देता उनकी राख भी
बहा निर्मल ज्ञान गंगा
खिल जाते हैं अंतरउपवन
प्रेम की पूर्णता के रूप में
उगता है चाँद
बिखरी है जिसमें
शरद की ज्योत्सना
बरसती हैं जल धाराएँ
सावन-भादों की
मानो झर रही हो नभ से शांति और शुभता
अनंत से मिलन का यही तो परिणाम है
कि वह हर जगह है
हिमालय की गुफाओं में ही नहीं
अंतर गह्वर में भी, क्योंकि
भीतर ही काशी है भीतर ही कैलाश !
आदरणीया अनीता जी ! सादर वन्दे !!
जवाब देंहटाएंभीतर ही काशी है भीतर ही कैलाश !
शिव और शिवा साक्षात् कल्याण है , अपने है , जग तो स्वप्न मात्र है
स्वयं से साक्षात् कराती एक और अनुपम रचना के लिए अभिनन्दन
जय शम्भू !
स्वागत व आभार तरुण जी!
हटाएंनमस्ते.....
जवाब देंहटाएंआप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की ये रचना लिंक की गयी है......
दिनांक 09/04/2023 को.......
पांच लिंकों का आनंद पर....
आप भी अवश्य पधारें....
बहुत बहुत आभार कुलदीप जी!
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार ओंकार जी!
हटाएंसत्य ईश्वर हमारे अंतस में ही विराजे है , बस सच्चे हृदय से देखने भर की देर है । जिस दिन ये परम साक्षात्कार हो जाता है मोह और अज्ञान रुपी सारे द्वेष कलुष भेद विकार अंधबंध नष्ट हो जाते है और जो पारमात्मिक संतोष सुखानंद बरसता है उसका तो वर्णन ही अपार है । मन को इसी सुखानंद से जोड़ती रचना मिलन आत्मा का परमात्मा का ।
जवाब देंहटाएंइस सुंदर और विस्तृत टिप्पणी हेतु हार्दिक स्वागत व आभार प्रियंका जी !
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