जीवन - एक रहस्य
सब कुछ व्यवस्थित हो जीवन में
नपा-तुला, मन के मुताबिक़
ऐसा कहाँ होता है !
अचानक घट जाता है कुछ
भर जाता है जो अंतर में असंतोष
परमात्मा हमें सुलाये रखना नहीं
जगाये रखना चाहते हैं
दो पैरों पर खड़े रहें सदा
तकते आकाश को
ऐसा उजकाये रखना चाहते हैं !
जीवन एक सीधी रेखा पर नहीं
ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर चलने का नाम है
यहाँ रुक गया जो
थक जाता है
चलने वाले को ही विश्राम है !
अनंत है वह
हम वही हैं यदि
तो अनंत ही हमारी सीमा है
सजग रहे अंतर, इसमें ही उसकी गरिमा है
जो करणीय है
वह करवा ही लेता है
प्राप्य है जो दिला देता
फिर कैसा द्वन्द्व और कैसा अभिमान
जीवन एक रहस्य है
लें ऐसा ही मान !
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 17 अगस्त 2023 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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बहुत बहुत आभार रवींद्र जी!
हटाएंजीवन दर्शन का यथार्थ!
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार विश्वमोहन जी!
हटाएंजीवन का गूढ़ रहस्य बहुत ही सरल शब्दों में बताया है आपने, अनिता दी।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार जिज्ञासा जी!
हटाएंबहुत सुंदर मन को हौंसला देती एक स्नेहिल रचना
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