प्रीत भरी पाती
श्वासें महकें अंतर चहके, पल पल नव गीत बजें भीतर
जीवन जो भी भेंट दे रहा, स्वीकारें उत्साहित होकर I
कभी-कभी ढक गया उजाला, कुछ भी नजर नहीं आता है
खुशियों के पीछे-पीछे ही, गम का दूत चला आता है I
लेकिन बादल कब तक आखिर,अंशुमान को ढक पाए हैं
कब तक पर्वत रोक सकेंगे, तूफान से टकराए हैं I
चलते जाना है रस्ते पर, कंटकमय या पथरीला है
मंजिल दूर नहीं है साथी, अनथक थोड़ा सा चलना है I
खाली करके मन में भर लें, नए जोश औ' नए होश को
उपवन बन जाये मन आंगन, आतुर है सूरज उगने को I
हर उत्सव संदेशा लाया, थम कर थोड़ा भीतर झाँकें
दुःख के पीछे छिपा हुआ जो, सुख के उस दरिया को पाके I
ध्यान का फूल कली योग की, उर उद्यान में यदि खिलेगी
कृपा का बादल बरस रहा है, मंजिल हाथ थाम चलेगी I
अनिता निहालानी
९ अगस्त २०१०