जहां प्रीत की गागर ढुलके
खो जाते हैं प्रश्न जहां सब
एक प्रकाश ही दिपदिप करता,
समाधान हो जाता मन का
कोई सरस प्रेम है भरता !
सीमाएं मिट जातीं सारी
हम अनंत में दौड लगाते,
पल में सारे नक्षत्रों का
भ्रमण किये फिर वापस आते !
कण-कण जग का भेद खोलता
तन भी पिघल-पिघल ज्यों जाता,
मन का तो कुछ पता न चलता
एक ही तत्व नजर बस आता !
वह परम, वह अपना प्रियतम
बाट जोहता कब घर लौटें,
बार-बार भेजे संदेशे
कब अपना बिखराव समेटें !
जाने कौन से लोभ की खातिर
माया पंक में हम डूबे हैं,
अब तक तो कुछ चैन न पाया
बांधे कितने मंसूबे हैं !
भीतर ही वह देश अनोखा
जहां सरसता टपटप टपके,
जहां जले हैं दीप हजारों
जहां प्रीत की गागर ढुलके !
वाह ....खूबसूरत कृति ....
जवाब देंहटाएंभीतर ही वह देश अनोखा
जवाब देंहटाएंजहां सरसता टपटप टपके,
जहां जले हैं दीप हजारों
जहां प्रीत की गागर ढुलके !
प्यार बरसाती हुई रचना वाह वाह ...
विछोह और उम्मीद के दिए |
जवाब देंहटाएंतेज हवाओं में सुरक्षित लिए ||
जाने कौन से लोभ की खातिर
जवाब देंहटाएंमाया पंक में हम डूबे हैं,
अब तक तो कुछ चैन न पाया
बांधे कितने मंसूबे हैं !
भीतर ही वह देश अनोखा
जहां सरसता टपटप टपके.
Waah ... Jivan ka sach.
..... प्रशंसनीय रचना - बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हमेशा की तरह :-)
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