निजता में उसको पा जाये
धन कमाता चैन गंवा कर
चैन कमाता धन गंवाकर,
कैसा अद्भुत प्राणी मानव
रह जाते दोनों खाली कर !
श्वास श्वास में भर सकता था
बड़े परिश्रम से वह पाता,
सहज ही था जो मिला हुआ
दुगना श्रम कर उसे मिटाता !
खेल समझ के जीवन कोई
मोल कौडियों बेच रहा है,
मुँह लटकाए बोझ उठाये
दूजा पीड़ा झेल रहा है !
कहीं हो रही भूल है भारी
निज पैरों पर चले है आरी
तज हीरे कंकर घर लाते
करें अँधेरे की तैयारी !
भीतर जो चल रहा युद्ध है
भाग रहा है उससे मानव,
धन, यश एक बहाना ही है
बचने का भीतर जो दानव !
खुले आँख तो भ्रम मिट जाये
उत्सव जीवन में छा जाये,
ढूँढ रहा जो मानव जग में
निजता में उसको पा जाये !