मन माँगे मोर
कहीं वह जंगल में नाचने वाला
मोर तो नहीं, जो मन माँगता है
मोर तो नहीं, जो मन माँगता है
है खुद भी तो मयूर पर
यह नहीं जानता है...
या फिर ‘मेरा मन’ मांगता
है
‘तेरे’ का जिसे पता नहीं
वह ‘मेरे’ का ही राग अलापता है..
क्या कहा ? यह आंग्ल भाषा का शब्द है
‘ज्यादा’ का जो देता अर्थ है
तो कृपण मन कहाँ सम्भालेगा
उसकी तली में तो हजारों छिद्र
हैं
क्या नहीं लुटाया माँ ने प्यार अपार
खाली नजर आता
क्यों मन का संसार
क्या नहीं लुटा रहा परमात्मा
नेमते हजारों हजार
कर अनदेखा गीत वही गा
चलता रहा व्यापार
अब लुटाने का मौसम आया है
दीयों ने लुटाया है उजाला
और मौसम ने बहार !
आने वाले प्रकाश पर्व की बहुत बहुत बधाई !
विदेश यात्रा का सुयोग बना है, अब वापस आकर
नवम्बर में मुलाकात होगी.
बहुत सुन्दर..आने वाले प्रकाश पर्व की आप को भी बहुत बहुत बधाई !
जवाब देंहटाएंतो कृपण मन कहाँ सम्भालेगा
जवाब देंहटाएंउसकी तली में तो हजारों छिद्र हैं
क्या नहीं लुटाया माँ ने प्यार अपार
खाली नजर आता
क्यों मन का संसार.... क्या बात कहि है अनीता जी , बहुत खूब
आपकी इस उत्कृष्ट रचना की चर्चा कल 20/10/2013, रविवार ‘ब्लॉग प्रसारण’ http://blogprasaran.blogspot.in/ पर भी ... कृपया पधारें ..
शालिनी जी, बहुत बहुत आभार !
हटाएंबहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट महिषासुर बध (भाग तीन)
सुन्दर रचना ...
जवाब देंहटाएंआपको भी दीपावली की हार्दिक बधाई ... विदेश यात्रा सुखद हो ...
अनीता जी बहुत बहुत सुन्दर कविता । सच कहा की हजारों नेमतें और माँ का असीम प्यार इन्सान भूल जाता है फिर इस "और" की भीड़ में शामिल हो जाता है |
जवाब देंहटाएंमाहेश्वरी जी, कालीपद जी, दिगम्बर जी, इमरान व शालिनी जी आप सभी का स्वागत व आभार !
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