एक अजब सा खेल
चल रहा
इक ही धुन बजती धड़कन में
इक ही राग बसा कण-कण में,
एक ही मंजिल, रस्ता एक
इक ही प्यास शेष जीवन में !
मधुरम धुन वह निज हस्ती की
एक रागिनी है मस्ती की,
एक पुकार सुनाई देती
दूर पर्वतों की बस्ती की !
मस्त हुआ जाये ज्यों नदिया
पंछी जैसे उड़ते गाते,
डोलें मेघा संग हवा के
बेसुध छौने दौड़ लगाते !
खुला हृदय ज्यों नीलगगन है
उड़ती जैसे मुक्त पवन है,
दीवारों में कैद न हो मन
अंतर पिय की लगी लगन है !
एक अजब सा खेल चल रहा
लुकाछिपी है खुद की खुद से,
मन ही कहता मुझे तलाशो
मन ही करता दूर स्वयं से !
बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार प्रतिभाजी !
हटाएंक्या बात है !! जीवन दर्शन, व्यक्ति और उसके मन के दर्शन को कितने सुन्दर, छंदबद्ध ढंग से छूता गीत। बहुत ही सुन्दर। वास्तव में ऐसे गीतों की लंबी समीक्षा करते जाना का मन करता है, ऐसे हैं ये गीत।
जवाब देंहटाएंसुंदर शब्दों में प्रतिक्रिया के लिए आभार विकेश जी !
हटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार ओंकार जी !
हटाएंबहुत खूबसूरत भाव उभरे हैं। बधाई अनिता जी।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार मीना जी, शुभकामनाएं !
हटाएंबहुत गहरा दर्शन छुपा रहता है आपकी हर रचना में ... आशा और सादकी का एहसास जैसे जीवन की भोर का कोई स्वर ...
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