तुम ही हो नव भक्ति स्वरूपा
नाम हजारों जग
जननी के
है अनंत शुभ
शक्ति स्वरूपा,
दया रूपिणी ! उर
अंतर में
तुम ही हो नव
भक्ति स्वरूपा !
सारा जग तुमसे
प्रेरित हो
गतिमय निशदिन
स्पंदित होता,
तुम्हीं सृष्टि जन्माती
हो माँ
तुमसे जग विस्तार
पा रहा !
अष्ट भुजाओं वाली
देवी
समृद्धि, सुख दे शांति भर रही,
अविरल, अविरत बहे पावनी
कृपा तुम्हारी
सदा झर रही !
तुम्हीं भैरवी, रुद्राणी भी
विद्या दात्री
माँ भवानी,
महालक्ष्मी, पार्वती माता
गंगा, तुलसी, तुम्हीं शिवानी !
कुष्मांडा, शैल पुत्री भी
गौरी, भद्रा, दुर्गा काली,
चन्द्र घंटा व ब्रह्मचारिणी
तुम्हीं वैष्णवी
शेरों वाली !
दया, क्षमा, करुणा व सरलता
लज्जा, कांति, तुम्हीं हो मेधा,
क्षुधा, पिपासा रूप में रहो
यज्ञ तुम्हीं तुम
से ही समिधा !
जागो ! हे
जगदम्बा ! उर में
मर्म साधना का हम
जानें,
ज्योति जगे अंतर
में दिपदिप
जीवन रहते ही
पहचानें !