तृष्णा दुष्पूर है
कश्मीर को भारत से
अलग करने की तृष्णा की आग
में
जलता हुआ पाकिस्तान
बाँट रहा है वही हिंसा की आग
विश्व देख रहा है विनाश के इस पागलपन को
कभी धरती का स्वर्ग कहा
जाने वाला
कश्मीर आज जल रहा है
और जल रहे हैं अमन बहाल
करने वाले वीर
महर्षि कश्यप की तप स्थली
रही यह घाटी
जो वेदों के गान से गुंजित
थी
रक्त रंजित है आज
जो कभी सम्राट अशोक के साम्राज्य
का भाग थी
विक्रमादित्य के कदम भी पड़े
थे जहाँ
मौजूद हैं जहाँ गणपति और भवानी
के मन्दिर
महाभारत काल से
ऋषि परंपरा और सूफी इस्लाम
की
शांति पूर्ण सहभागिता से
पोषित
सिखों के महाराजा हरिसिंह
की पावन धरा
आज पुकारती है इंसाफ के लिए
दम घुटता है उसका
बमों और हथियारों के साये
में
जीने को विवश हैं जहाँ लोग
भारत की शान और मान
पूछती है काश्मीर की यह घाटी
न जाने कितने वीरों को और
बलिदान देना होगा
न जाने कब यहाँ शांति का
फूल खिलेगा
प्रश्न ही प्रश्न हैं उत्तर
कौन देगा ..?