सूरज और चाँद
‘वह’ सूरज है...
भरी दोपहरी का
तपता सूरज !
हमें चाँद की शीतल उजास ही सुहाती है
मुख फेर लेते हैं हम
उजाले से
या हमारी आँखें मुंद जाती हैं !
तज प्रखर ज्योति
तज विस्तीर्ण गगन
घूमता रहता मन अपनी ही गलियों में
मद्धिम ज्योत्स्ना
ही मन को लुभाती है !
वहाँ कोई दूसरा नहीं
यहाँ पूरा जगत है,
वहाँ निस्तब्धता है
यहाँ कोलाहल है !
कोई-कोई ही ‘उसका’
चाहने वाला
मन का तो हर कोई रखवाला
‘उसकी’ ही रौशनी प्रतिबिंबित करता
फिर भी ‘उसके’ निकट जाने से डरता
सूरज के उगते ही छिप जाता चाँद
खो जाते तारिकाओं के समूह
वह एकक्षत्र स्वामी है नभ का
नींद में छिप जाता है लेकिन
मन स्वप्न तो बुनता ही रहता
‘उसका’ बल वहाँ नहीं चलता !
बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंचाद और सूरज का अपना-अपना महत्व है।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 2.7.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा -3750 पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
बहुत बहुत आभार !
हटाएंएक रात्रि का मालिक एक दिन का बहुत ही बढ़िया
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