गुरुवार, जुलाई 16

माया

माया 


कभी दर्द दिया 
कभी मुस्कानें
कभी रोये औरों के दुःख पर 
फिर दिए उन्हीं को ही ताने
कभी राह दिखाई मंजिल की 
कभी मन में  संशय भर डाला
कभी रोका जिस पथ चलने से 
फिर उसका पता बता डाला ! 
रिश्तों की ऐसी माया है 
कोई पार निकल कर ही जाने 
यह निज कर्मों की खेती है 
सुख-दुःख के बोये थे दाने !


7 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (१८-०७-२०२०) को 'साधारण जीवन अपनाना' (चर्चा अंक-३७६६) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

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