माया
कभी दर्द दिया
कभी मुस्कानें
कभी रोये औरों के दुःख पर
फिर दिए उन्हीं को ही ताने
कभी राह दिखाई मंजिल की
कभी मन में संशय भर डाला
कभी रोका जिस पथ चलने से
फिर उसका पता बता डाला !
रिश्तों की ऐसी माया है
कोई पार निकल कर ही जाने
यह निज कर्मों की खेती है
सुख-दुःख के बोये थे दाने !
सम्बन्धों की पोल खोलती,
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना।
स्वागत व आभार !
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (१८-०७-२०२०) को 'साधारण जीवन अपनाना' (चर्चा अंक-३७६६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
बहुत बहुत आभार !
हटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबढ़िया प्रस्तुति
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