भोर में कोई जगाये
चैन नींदों में समाए
स्वर्ग स्वप्नों में दिखाए,
भोर में कोई जगाये
बस यही तुम मांग लेना !
बैन में मधुरा भरी हो
नैन सूरत साँवरी हो,
जगत की पीड़ा हरी हो
बस यही आशीष लेना !
पग कभी रुकने न पाएँ
हाथ अनथक श्रम उठायें,
अधर पल-पल मुस्कुराएं
बस यही वरदान लेना !
रिक्त हो उर चाह से अब
सिक्त हो रस रास से जब,
पूर्णता का भास हो तब
बस यही सुख जान लेना !
श्वासों में भी कंप न हो
देह-हृदय में द्वंद्व न हो,
सुरताली स्वच्छंद न हो
बस यही संकल्प लेना !
रिक्त हो उर चाह से अब
जवाब देंहटाएंसिक्त हो रस रास से जब,
पूर्णता का भास हो तब
बस यही सुख जान लेना !... वाह! अद्भुत!!!
कविता के मर्म तक पहुँचने हेतु स्वागत व आभार !
हटाएंबेहतरीन।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
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