नाचती इक ऊर्जा ही
नित नवीन निपट अछूती
इक मनोहरी ज्योत्स्ना है,
सुन सको तो सुनो उसकी
आहट ! यह न कल्पना है !
गूँज कोई नाद अभिनव
हर शिरा में बह रहा है,
वह अदेखा, जानता सब
न जाने क्या कह रहा है !
आँख मूँदे श्रवण रोके
झाँक अंतर मन टटोलो,
ज्योति की इक धार बहती
हृदय की हर गाँठ खोलो !
नाचती इक ऊर्जा ही
प्राण बनकर संचरित है,
जानती सब पर अजानी
पुष्प बन कर उल्लसित है !
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (30-09-2020) को "गुलो-बुलबुल का हसीं बाग उजड़ता क्यूं है" (चर्चा अंक-3840) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 30 सितम्बर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत बहुत आभार !
हटाएंनाचती इक ऊर्जा ही
जवाब देंहटाएंप्राण बनकर संचरित है
बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना...
स्वागत व आभार !
हटाएंवाह अनीता जी, आँख मूँदे श्रवण रोके
जवाब देंहटाएंझाँक अंतर मन टटोलो,
ज्योति की इक धार बहती
हृदय की हर गाँठ खोलो !... आध्यात्म में सजी रचना ... बहुत खूब