मंगलवार, सितंबर 29

नाचती इक ऊर्जा ही

नाचती इक ऊर्जा ही 


नित नवीन निपट अछूती

इक मनोहरी ज्योत्स्ना है,

सुन सको तो सुनो उसकी 

आहट ! यह न  कल्पना है !


गूँज कोई नाद अभिनव 

हर शिरा में बह रहा है,

वह अदेखा, जानता सब 

न जाने क्या कह रहा है !


आँख मूँदे श्रवण रोके 

झाँक अंतर मन टटोलो, 

ज्योति की इक धार बहती 

हृदय की हर गाँठ खोलो !


नाचती इक ऊर्जा ही 

प्राण बनकर संचरित है, 

जानती सब पर अजानी

पुष्प बन कर उल्लसित है !

 

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (30-09-2020) को   "गुलो-बुलबुल का हसीं बाग  उजड़ता क्यूं है"  (चर्चा अंक-3840)    पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 30 सितम्बर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. नाचती इक ऊर्जा ही
    प्राण बनकर संचरित है

    बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना...

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  4. वाह अनीता जी, आँख मूँदे श्रवण रोके

    झाँक अंतर मन टटोलो,

    ज्योति की इक धार बहती

    हृदय की हर गाँठ खोलो !... आध्यात्म में सजी रचना ... बहुत खूब

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