कुछ अपने दिल की बात करो
तुम दूजों की बातें सुनते
उनके रंग में नहीं रंगो,
कुछ करो शिकायत निज दुःख की
कुछ अपने दिल की बात करो !
हो अद्वितीय पहचान इसे
साहस खोजो एकांत चुनो,
निज गरिमा को पहचान जरा
जग में सुवास बन कर बिखरो !
वह रब हर इक में छुपा हुआ
जगने की राह सदा देखे,
जो उगे नितांत तुम्हारे उर
उन सपनों को साकार करो !
पहले मन को खंगाल जरा
कुछ हीरे-मोती जमा करो,
फिर उन्हें चढ़ाकर चरणों में
निज भावों का आधान करो !
जो गहराई से प्रकटेगा
संगीत वही कोरा होगा,
यदि रंग किसी का नहीं चढ़े
वह गीत तुम्हारा ही होगा !
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 22.10.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
बहुत बहुत आभार !
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 22 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंवाह! बहुत ही सुंदर!
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
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