राखी के कोमल धागों में
दीर्घ शृंखला में पर्वों की
उत्सव एक अति है पावन,
राखी कह कर कोई पुकारे
कोई कहता रक्षा बंधन !
श्रावण की जब पड़ें फुहारें
भीगा-भीगा सा हो कण-कण,
कोमल भाव जगाता उत्सव
याद दिलाता स्वर्णिम बचपन !
लघु कलाई में सजती थी
रंग-बिरंगी राखी सुंदर,
बहनों का दिल खिल जाता था
भाई को मिष्ठान खिलाकर !
एक मधुर प्रेम की धारा
बहे निरंतर कभी न टूटे,
रेशम के धागे हों कच्चे
किंतु अटल है प्रीत न छूटे !
कुशल कामना श्वास-श्वास में
भाई के हित बहनें माँगे,
रक्षा का जो वचन दिया है
हर क़ीमत पर भाई निबाहें !
राखी के कोमल धागों में
छिपी हुईं कितनी गाथाएँ,
चिरकाल से पर्व अनूठा
मानवता का पाठ पढ़ाए !
बहुत सुंदर रचना । रक्षाबंधन की शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (22-8-21) को "भावनाओं से हैं बँधें, सम्बन्धों के तार"(चर्चा अंक- 4164) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी। आप सभी को रक्षाबंधन के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनायें
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कामिनी सिन्हा
एक मधुर प्रेम की धारा
जवाब देंहटाएंबहे निरंतर कभी न टूटे,
रेशम के धागे हों कच्चे
किंतु अटल है प्रीत न छूटे
वाह!!!
बहुत ही सुन्दर लाजवाब।
स्वागत व आभार सुधा जी !
हटाएंसुंदर शब्द संयोजन।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंयह मृदुल मधुर प्रीत ही तो शाश्वत है जो कभी न छूटता है और न ही टूटता है । स्वर्णिम स्मृतियां उभर आई । हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंवाकई और उस शाश्वत को ही हृदय में धारण कर लेना है, स्वागत व आभार !
हटाएंये धागा नहीं ... जीवन का अटूट पक्ष है ... जो हर भाई और बहन को जोड़े रखता है चिरकाल तक ... निरंतर बिना स्वार्थ के ...
जवाब देंहटाएंआप बिलकुल सही कह रहे हैं, स्वागत व आभार!
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