ख़ुद को ही
कोई ओट दे देगा
उढ़का देगा बाती
या तेल भर देगा दीपक में
पर जलना तो ख़ुद को ही पड़ता है !
कोई मार्ग दिखा देगा
लक्ष्य की पहचान दे देगा
या पाथेय भी दे देगा
पर चलना तो ख़ुद को ही पड़ता है !
कोई और नहीं उठा सकता
किसी के काँधे का बोझ
न ही उतार सकता है
क्योंकि गहन है कर्म की गति
अदृश्य है वह भार
स्वयं ही उतारना है
हल्का होना है
क्योंकि उड़ना तो ख़ुद को ही पड़ता है !
कोई पता बता देगा घर का
यदि भूल गया है मन
भटकते हुए इस चक्रव्यूह में
उसकी याद दिला देगा
पर मुड़ना तो ख़ुद को ही पड़ता है !
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (०६-०८-२०२३) को 'क्यूँ परेशां है ये नज़र '(चर्चा अंक-४६७५ ) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत बहुत आभार अनीता जी!
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार ओंकार जी!
हटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर...
कुछ भी पाना है तो करना तो खुद ही पड़ता है।