मन कहाँ ख़ाली हुआ है
यह ग़लत है, वह ग़लत है
ग़लत है सारा जहाँ,
बस सही हम जा रहे, यह
राह रोके क्यों खड़ा ?
क्यों नहीं उड़ते गगन में
देर अब किस बात की,
थी तैयारी इस पल की
बात क्या फिर राज की !
ढेर बोझा है दिलों पर
अनगिनत शिकवे छिपे,
मन कहाँ ख़ाली हुआ है
तीर कितने हैं बिंधे !
आग भी जलती, वहीं है
प्रीत का दरिया छिपा,
जाग कोई देखता, कब
तमस में मन आ घिरा !
सुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार जोशी जी !
हटाएंयह ग़लत है, वह ग़लत है
जवाब देंहटाएंग़लत है सारा जहाँ,
राह तो यही रोकता है
आभार
सादर वंदे
स्वागत व आभार यशोदा जी !
हटाएंवाह!अनीता जी ,बहुत खूब। सारे जहाँ की चिंता छोड़ दूर गगन में उड़ान जाना है बस......
जवाब देंहटाएंउड़ने की कला आ जाये तो फिर क्या बाक़ी रह जाता है ! स्वागत व आभार शुभा जी !
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत सुन्दर ... खुला गगन हो मुक्त गगन हो ...
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
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