शुक्रवार, जून 21

वही चेतना वही बोध है


वही चेतना वही बोध है

चिन्मय बसा रहे मेधा में

योग्य वरण के एक ईश है,

जग यह मोहक रूप धर रहा

सुंदर उससे कौन शीश है !

 

उसे जानना पाना उसको

हो शुभ जीवन का लक्ष्य यही,

जिससे परम प्रपंच घटा है

महिमा सदा अनंत अगम की !

 

वही श्रेष्ठ विभु सुख का सागर

नीर, वायु, पावक का दायक, 

जड़ यह पाँच भूतों की सृष्टि

चेतन वही ज्ञान संवाहक !

 

उस चेतन का ध्यान धरें हम

उसके हित ही उसे भजें हम,

जग ही माँगा यदि उससे भी

व्यर्थ रहेगा यह सारा श्रम !

 

उसके सिवा न कोई दूजा

इन श्वासों का वही प्रदाता,

प्रज्ञामेधाधी उससे है

ज्ञान स्वरूप वही है ज्ञाता !

 

वही चेतना वही बोध है

उसका ही हो मन में चिंतन,

आनंद का स्रोत अजस्र है

स्फुरण सहज वही, वही स्पंदन !

 

अपनी महिमा वह ही जाने

मेधा में मणि जैसा दमके,

यही कामना है अंतर की

अपनी गरिमा में नित चमके !

 

सभी कारणों का वह कारण

खुद रहता है सदा अकारण,

सुंदर दुनिया एक रचायी

निज उजास का करने वितरण !

 

अहंकार कर जिस क्षण भूला

टूट गई वह डोर प्रीत की,

मन विवेक का थामे दामन

दुविधा छूटे हार-जीत की !

 

अविनाशी कण-कण में देखे

शाश्वत हर घटना के पीछे,

हर अंतर में छुपा पुरातन

मौन ध्यान में सहज निहारे ! 


6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 22 जून 2024 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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  2. अहंकार कर जिस क्षण भूला
    टूट गई वह डोर प्रीत की,
    मन विवेक का थामे दामन
    दुविधा छूटे हार-जीत की !
    कितना सुंदर सुवचन ! साधुवाद !

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