वही चेतना वही बोध है
चिन्मय बसा रहे मेधा में
योग्य वरण के एक ईश है,
जग यह मोहक रूप धर रहा
सुंदर उससे कौन शीश है !
उसे जानना पाना उसको
हो शुभ जीवन का लक्ष्य यही,
जिससे परम प्रपंच घटा है
महिमा सदा अनंत अगम की !
वही श्रेष्ठ विभु सुख का सागर
नीर, वायु, पावक का दायक,
जड़ यह पाँच भूतों की सृष्टि
चेतन वही ज्ञान संवाहक !
उस चेतन का ध्यान धरें हम
उसके हित ही उसे भजें हम,
जग ही माँगा यदि उससे भी
व्यर्थ रहेगा यह सारा श्रम !
उसके सिवा न कोई दूजा
इन श्वासों का वही प्रदाता,
प्रज्ञा, मेधा, धी उससे है
ज्ञान स्वरूप वही है ज्ञाता !
वही चेतना वही बोध है
उसका ही हो मन में चिंतन,
आनंद का स्रोत अजस्र है
स्फुरण सहज वही, वही स्पंदन !
अपनी महिमा वह ही जाने
मेधा में मणि जैसा दमके,
यही कामना है अंतर की
अपनी गरिमा में नित चमके !
सभी कारणों का वह कारण
खुद रहता है सदा अकारण,
सुंदर दुनिया एक रचायी
निज उजास का करने वितरण !
अहंकार कर जिस क्षण भूला
टूट गई वह डोर प्रीत की,
मन विवेक का थामे दामन
दुविधा छूटे हार-जीत की !
अविनाशी कण-कण में देखे
शाश्वत हर घटना के पीछे,
हर अंतर में छुपा पुरातन
मौन ध्यान में सहज निहारे !
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 22 जून 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार यशोदा जी !
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर सराहनीय
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंअहंकार कर जिस क्षण भूला
जवाब देंहटाएंटूट गई वह डोर प्रीत की,
मन विवेक का थामे दामन
दुविधा छूटे हार-जीत की !
कितना सुंदर सुवचन ! साधुवाद !
स्वागत व आभार मीना जी !
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