जीवन का यह कलश रीतता
कितना रस्ता चल कर आया
फिर भी कहीं नहीं पहुँचा है,
जाने कब यह राज खुलेगा
मंज़िल पर ही सदा खड़ा है !
एक सुकून उतरता भीतर
मधुर परस जब उसका मिलता,
जिसका पता खोजते ही तो
जीवन का यह कलश रीतता !
नेति-नेति के पथ पर चल कर
उसके द्वारे जाना होगा,
तज कर सभी प्रवेश मिलेगा
सहर्ष सभी लुटाना होगा !
हल्का होकर तभी उड़ेगा
जैसे कोई श्वेत पंख हो,
या तुषार की पावन बूँदें
फूलों की भीनी सुगंध हो !
होकर अगर न होना आये
यही राज उसने सिखलाया,
जैसे विमल भोर का तारा
अगले ही पल नज़र न आया !
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 06 जुलाई 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार यशोदा जी !
हटाएंसुन्दर कृति सृजन।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
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