मन पाए विश्राम जहाँ

नए वर्ष में नए नाम के साथ प्रस्तुत है यह ब्लॉग !

मंगलवार, मई 17

अभी

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अभी अभी खुली हैं आँखें तक रही हैं अनंत आकाश को अभी जुम्बिश है हाथों में  लिख रही है कलम प्रकाश को अभी करीब है खुदा पद चाप ...
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शुक्रवार, मई 13

गुरूजी के जन्मदिन पर

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गुरूजी के जन्मदिन पर शब्द नहीं ऐसे हैं जग में जो तेरी महिमा गा पायें, भाव अगर गहरे भी हों तो व्यक्त हृदय कैसे कर पायें !   ...
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गुरुवार, अप्रैल 28

खिले रहें उपवन के उपवन

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खिले रहें उपवन के उपवन रिमझिम वर्षा कू कू कोकिल मंद पवन सुगंध से बोझिल, हरे भरे लहराते पादप फिर क्यों गम से जलता है दिल ! ...
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गुरुवार, अप्रैल 21

अर्थवान मन

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अर्थवान मन समेट ले सारे ब्रह्मांड को अपने भीतर या ‘न कुछ’ हो जाये मन तभी अर्थवान होता है वरना तो बस परेशान होता है कभी इस बा...
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सोमवार, अप्रैल 11

सत्य

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सत्य  “ सत्य समान नहीं कोई पावन सत्य आश्रय मन अपावन, नदियाँ ज्यों दौड़ें सागर में सत्य साध्य है सत्य ही साधन ! ” जो सत्य ...
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मंगलवार, अप्रैल 5

प्रकाश की एक धारा

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प्रकाश की एक धारा प्रकाश की एक धारा अनवरत साथ बहती है भले नजर न आये सरस्वती सी गहराई की थाह नहीं जिसकी और शीतल इतनी कि गोद...
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मंगलवार, मार्च 29

भारत

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भारत शांति का संदेश दे रहा जो भारत सारी दुनिया को स्वयं अशांत क्यों हो बैठा ? प्रीत की डोर से बांधा जिसने दुनिया के हर कोन...
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शुक्रवार, मार्च 18

थोड़ी सी हँसी

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थोड़ी सी हँसी फूल क्या लुटाते हैं ? इतना जो भाते हैं थोडा सा रंग.. गंध थोड़ी सी और ढेर सारी खिलावट ! नहीं उनके होने में जरा ...
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गुरुवार, मार्च 3

सुख-दुःख

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सुख-दुःख एक को लिया तो दूसरा पीछे आने ही वाला है चाहा सुख को तो दुःख को गले लगाना ही है पार हुआ जो मन दोनों से उसने ही यह रा...
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बुधवार, मार्च 2

होना भर यदि क़ुबूल हो

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होना भर यदि क़ुबूल हो दुःख के कांटे यदि नहीं चाहिये  तो सुख के फूल कैसे खिलेंगे पतवार खेने का श्रम उठाया नहीं तो पार भला कैसे उ...
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सोमवार, फ़रवरी 29

जहाँ नाचने को जग सारा

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जहाँ नाचने को जग सारा जीवन एक ऊर्जा अनुपम पल-पल नूतन होती जाती, नव छंद, नव ताल सीख लें  नव सुर में नवगीत सुनाती ! इस पल...
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गुरुवार, फ़रवरी 25

उसका साथ

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उसका साथ एक अदृश्य हाथ सदा थामे रहता   बढ़ो, तुम आगे बढ़ो ! कोमल स्पर्श उसका, सहला जाता   छालों को पावों के   स्मृति का आँचल...
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बुधवार, फ़रवरी 10

आया बसंत

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आया बसंत सरसों के पीले फूलों पर गुनगुन गाते डोल रहे हैं, मतवाले मदमस्त भ्रमर ये कौन सी भाषा बोल रहे हैं ? पात झरे भई...
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Anita
यह अनंत सृष्टि एक रहस्य का आवरण ओढ़े हुए है, काव्य में यह शक्ति है कि उस रहस्य को उजागर करे या उसे और भी घना कर दे! लिखना मेरे लिये सत्य के निकट आने का प्रयास है.
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