मन पाए विश्राम जहाँ

नए वर्ष में नए नाम के साथ प्रस्तुत है यह ब्लॉग !

शुक्रवार, जनवरी 27

उन सभी के लिए जिनके विवाह की इस वर्ष पचीसवीं सालगिरह है

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विवाह की पचीसवीं सालगिरह पर  स्वयं को केंद्र मानकर दूसरे को चाहना पहली मंजिल है जो वर्षों पहले आप दोनों ने पा ली थी दूसर...
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मंगलवार, जनवरी 24

लौट आना है उसे घर

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लौट आना है उसे घर घूम कर सारा जहाँ लौट आना है उसे घर, गंगोत्री से उमगी धारा जा पहुँची जो गंगा सागर  ! हुई वाष्पित उडी गगन में ...
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शनिवार, जनवरी 21

जल रहा है किन्तु जीवन

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जल रहा है  किन्तु जीवन मीठे पानी का इक दरिया  निकट ही बस बह रहा है   एक कदम ही और चलो   मरुस्थल यह कह रहा है  अनसुनी कर बात ...
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शुक्रवार, जनवरी 20

तब

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तब  जब मन ही मन है भीतर    एक पहेली सा भरमाता है जीवन खो जाता है जब मन आत्मा के सान्निध्य में    बन जाता है  क्रीड़ांगण ...
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मंगलवार, जनवरी 10

सर्दियों की धूप

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सर्दियों की धूप  धूप कहाँ है  चलो उसे ढूँढ़ते हैं भिनसार में आती है सोने वाले कमरे की खिड़की  से  और दीवार पर एक चमकता हुआ रौश...
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शनिवार, जनवरी 7

कोई सुन रहा है

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कोई सुन रहा है  सुन सके न गर जमाना कोई सुन रहा है  बिखरे हुए लफ्जों को वही चुन रहा है  दीवाना दिल सजीले जो ख्वाब बुन रहा है  ...
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गुरुवार, जनवरी 5

घर का पता

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घर का पता  भूल गये हैं अपने घर का पता  और पूछना भी नहीं चाहते ऐसा नहीं कि शर्माते हैं  कोई अपना घर भी है   यह भी नहीं जा...
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बुधवार, जनवरी 4

नींद और जागरण

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नींद और जागरण  खुद का पता भी अक्सर गैरों से पूछते हैं जाहिर सी बात है कि अब तक भटक रहे  हैं  ऊँगली जरा दिखायी मुरझाया दिल कम...
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मंगलवार, जनवरी 3

कौन बहाए नदिया निर्झर

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कौन बहाए नदिया निर्झर कुह कुह कलरव भ्रमरों के स्वर  मर्मर राग भरे हैं भीतर,  कौन सजाए  कोमल झुरमुट  कौन बहाए नदिया निर्झर ! ...
सोमवार, जनवरी 2

रंग भर रहा कोई पल-पल

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 रंग भर रहा कोई पल-पल  कोकिल कहाँ सोचती होगी किस सुर में गाना है    पंचम सुर में सहज कंठ से बहता मधुर तराना है  नदिया कब किस...
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शनिवार, दिसंबर 31

नये वर्ष में गीत नया हो

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नये वर्ष में गीत नया हो  राग नया हो ताल नयी हो  कदमों में झंकार नयी हो,  रुनझुन रिमझिम भी पायल की  उर में  करुण पुकार नयी ह...
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गुरुवार, दिसंबर 29

नया वर्ष भर झोली आया

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नया वर्ष भर झोली आया  मन  निर्भार हुआ जाता है  अंतहीन है यह विस्तार, हंसा चला उड़ान भर रहा  खुला हुआ अनंत का द्वार ! मन ...
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बुधवार, दिसंबर 28

शब्द तरंग

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शब्द तरंग  तरंग मात्र ही हैं शब्द  आते हैं और चले जाते हैं  हम ही हैं जो पकड़ लेते हैं उन्हें बीज की तरह  और जमा देते हैं मन ...
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सोमवार, दिसंबर 26

सबके उर में प्रेम बसा है

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सबके उर में प्रेम बसा है  कौन चाहता है बंधन को फिर भी जग बंधते देखा है, मुक्त गगन में उड़ सकता था पिंजरे में बसते देखा है ! फूल...
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मंगलवार, दिसंबर 20

स्वप्नों सी वे झर जाती हैं

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स्वप्नों सी वे झर जाती  हैं  खुशियों को पा लेने का भ्रम  नहीं मिटाता जीवन से गम,  स्वप्नों सी वे झर जाती  हैं  या जैसे फूलों से...
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Anita
यह अनंत सृष्टि एक रहस्य का आवरण ओढ़े हुए है, काव्य में यह शक्ति है कि उस रहस्य को उजागर करे या उसे और भी घना कर दे! लिखना मेरे लिये सत्य के निकट आने का प्रयास है.
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