मन पाए विश्राम जहाँ
नए वर्ष में नए नाम के साथ प्रस्तुत है यह ब्लॉग !
रविवार, अप्रैल 11
उस अनंत के द्वार चलें हम
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उस अनंत के द्वार चलें हम बाहर की इस चकाचौंध में भरमाया, भटकाया खुद को काफी दूर निकल आए हैं अब तो घर को लौट चलें हम ! कुदरत की यह मूक ...
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शनिवार, अप्रैल 10
कविता
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कविता नहीं जानती थी वह कैसे लिखी जाती है कविता न कभी छंद का ज्ञान लिया न अलंकारों का अध्ययन किया पर चाँद को देखकर उसका मन खिल जाता है...
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गुरुवार, अप्रैल 8
उस दिन
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उस दिन यह सारी कायनात उस दिन चलेगी हमारे इशारे पर भी जब हमारी रजा उस मालिक की रजा से एक हो जाएगी जब हमारी दुआओं में हरेक की सलामती क...
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मंगलवार, अप्रैल 6
कोरोना काल
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कोरोना काल यह भय का दौर है आदमी डर रहा है आदमी से गले मिलना तो दूर की बात है डर लगता है अब तो हाथ मिलाने से घर जाना तो छूट ही गया था ...
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सोमवार, अप्रैल 5
वर्षा थमी
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वर्षा थमी पंछी छोड़ नीड़ निज चहकें मेह थमा निकले सब घर से, सूर्य छिपा जो देख घटाएँ चमक रहा पुनः चमचम नभ में ! जगह जगह छोटे चहबच्चे फुद्के...
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क्यों रहे मन घाट सूना
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क्यों रहे मन घाट सूना पकड़ छोड़ें, जकड़ छोड़ें भीत सारी आज तोड़ें, बन्द है जो निर्झरी सी प्रीत की वह धार छोड़ें ! स्रोत जिसका कहाँ जाने कैद ...
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शनिवार, अप्रैल 3
पूजा पूजा के लिए
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पूजा पूजा के लिए जब साधन भी हो पूजा साध्य भी वही फल है जीवन वृक्ष का जब आपा कहीं पीछे छूट जाए तब जीवन पथ पर ‘कोई’ नया उजाला बिखेर जाता...
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शुक्रवार, अप्रैल 2
तू ही वहाँ नजर आया था
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जहां कुछ भी नहीं था वहीं सब कुछ हुआ है, जहां इक सोच भर थी वहाँ जग ये बना है ! तू ही वहाँ नजर आया था जिसकी आँखों में भी झाँका तू ही वहा...
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बुधवार, मार्च 31
समर्पण की एक बूँद
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समर्पण की एक बूँद मन अंतर में दीप जले जब तक इस ज्ञान का कि एक ही आधार है इस संसार का कि जीवन उसका उपहार है उस क्षण खो जाता अहंकार है ...
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सोमवार, मार्च 29
नए कई सोपान चढ़ने हैं
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नए कई सोपान चढ़ने हैं कल जो बीत गया जीवन की डाली से झर गया फूल है अब उसे दोबारा नहीं मिलना है आज तो एक नया फूल नए कर्म के रूप में खिल...
17 टिप्पणियां:
शनिवार, मार्च 27
अब समेटें धार मन की
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अब समेटें धार मन की खेलता है रास कान्हा आज भी राधा के संग, प्रीत की पिचकारियों से डाल रहा रात-दिन रंग ! अब समेटें धार मन की जगत में जो...
13 टिप्पणियां:
शुक्रवार, मार्च 26
भोर-रात्रि
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भोर-रात्रि हर सुबह एक नयी कहानी सुनाती है हर रात हम अतीत की केंचुल उतार अस्तित्त्व को सौंप देते हैं स्वयं को ताकि वह नया कर सके हमें जो ...
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बुधवार, मार्च 24
समय
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समय ‘समय ठहर गया है’ जब कहता है कोई तो एक सत्य से उसका परिचय होता है समय ठहरा ही हुआ है अनंत काल से ! गतिमान वस्तुएं उसके चलने का भ्रम...
16 टिप्पणियां:
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