अबूझ है हर शै यहाँ
नहीं, कुछ नहीं कहा जा सकता
हुआ जा सकता है
खोया जा सकता है
डूबा जा सकता है
नहीं, कुछ नहीं कहा जा सकता
फूल के सौंदर्य के बारे में
पीया जा सकता है
मौन रहकर
नहीं खोले जा सकते जीवन के रहस्य
जीवन जिया जा सकता है
नृत्य कहाँ से आता है
कौन जानता है ?
थिरका जा सकता है
यूँ ही किसी धुन, ताल पर
कहाँ से आती है मस्ती
कबीर की
वहाँ ले जाया नहीं
खुद जाया जा सकता है
डोला जा सकता है
उस नाद पर
जो सुनाया नहीं जा सकता
सुना जा सकता है
प्रकाश की नदी में डूबते उतराते भी
बाहर अँधेरा रखा जा सकता है
नहीं ही जो कहा जा सकता
उसके लिए शब्दों को
विश्राम दिया जा सकता है !
बिलकुल सही कहा ...मौन होकर बस पीया जा सकता है.अति सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएंअमृता जी, स्वागत व आभार..
हटाएंबहुत बढ़िया रचना..आभार
जवाब देंहटाएंनृत्य कहाँ से आता है
जवाब देंहटाएंकौन जानता है ?
थिरका जा सकता है
यूँ ही किसी धुन, ताल पर
बहुत ही सुन्दर रचना ...
सादर !
अनुभूति को हृदयंगम किया जा सकता है -बस !
जवाब देंहटाएंअनुभूति को एहसास किया जा सकता है बताया नहीं जा सकता है -यहाँ शब्दो को विश्राम दिया जा सकता है
जवाब देंहटाएंNew postअनुभूति : चाल,चलन,चरित्र
New post तुम ही हो दामिनी।
रविकर जी, बहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंशिवनाथ जी, प्रतिभा जी, व कालीपद जी आप सभी का स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंशत प्रतिशत सत्य ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर विचार हैं... अनिता जी !
जवाब देंहटाएंविश्राम करते हुए शब्दों की अनुभूति से अभिभूत हो रहे हैं हम...... :-)
~सादर!!!
सुन्दर कविता .कुछ लेना न देना मगन रहना .
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ...
जवाब देंहटाएंइमरान,अनिताजी, वीरू भाई व संगीता जी आप सभी का स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंसच है की कई बातों को बयान नहीं किया जा सकता ... बस महसूस किया जा सकता है ...
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