शुक्रवार, अगस्त 22

नई मंज़िल का पता पा

नई मंज़िल का पता पा 


दूर हों अज्ञान से हम 

कामनाएँ मिट रहें, 

स्वयं में ही तृप्त हो मन  

 कोई अभाव न खले !


किसी क्षण में वह परम मिल 

उसी पथ पर ले चले, 

दूर होगी हर इक कलल 

संग उसके मन हँसे !


यज्ञ की ज्वाला उठेगी

मिलन का उत्सव मने, 

नई मंज़िल का पता पा  

ज्योति सा मन खिल उठे !



8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में रविवार 24 अगस्त 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

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  2. बहुत सुंदर , सहजता से उस रब से जुड़ा जा सकता है , जिस सुख की चाह में मन दरबदर भटकता है ।

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  3. नई मंज़िल का पता पा
    ज्योति सा मन खिल उठे

    यूँ खिले कि चेतना सजग हो ..आमीन । अभिनंदन, अनीता जी ।

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