बापू से आज तक
जिसने भी सुने होंगे वे दिव्य वचन
लगा होगा, व्यर्थ ही है
इसी तरह और जिए चले जाना....
बदलना होगा..
आमूल-चूल परिवर्तन चाहिए ही
ऐसा ही लगा होगा
किन्तु ऐसा करके बना लिये होंगे
अनेक विरोधी उसने
जो प्रमुख थे
वे तैयार नहीं थे सुनने को
जो सीख रहे थे
उनके पास अधिकार नहीं थे
जो मानते थे स्वयं को चतुर
उनकी वास्तविक बुद्धिमानी तो
अभी प्रकट ही नहीं हुई थी
पहले भी हुए थे ऐसे महान
वह भी इस कड़ी में अंतिम नहीं होगा
यह भी पता है उसे
यह श्रंखला जारी रहेगी
जाने कब तक
सत्य का आधार
चेतना को ही माना था उसने
और यह कोई दोष तो नहीं...