उड़ न पाते हम गगन में
गुनगुनी सी आग भीतर
कुनकुना सा मन का पानी,
एक आशा ऊंघती सी
रेंगती सी जिन्दगानी !
फिर भला क्यों कर मिलेगा
तोहफा यह जिन्दगी का,
इक कशिश ही, तपन गहरी
पता देगी मंजिलों का !
जो जरा भी कीमती है
मांगता है दृढ़ इरादे,
एक ज्वाला हो अकंपित
पूर्ण हों जो खुद से वादे !
दे चुनौती, बन जो प्रेरक
गर न हों अवरोध पथ में,
आज थम सोचें जरा, क्या
उड़ सकेंगे हम गगन में ?