नया वर्ष आने पर हम हर बार संकल्प लेते हैं, नियमित भ्रमण और व्यायाम करेंगे, नियमित योग और ध्यान करेंगे, नियमित अध्ययन और लेखन करेंगे, किन्तु कुछ दिनों बाद जब जीवन अपने पुराने क्रम में आ जाता है तो सबसे पहले यही शब्द निकलते हैं, क्या करें समय ही नहीं मिलता. मुझे लगता है आने वाले वर्ष में यदि हम जीवन में कुछ सकारात्मक बदलाव चाहते हैं तो हमें अपने लिए कुछ वक्त चुराना होगा।
वक्त चुराना होगा !
काल की तरनि बहती जाती
तकता तट पर कोई प्यासा,
सावन झरता झर-झर नभ से
मरुथल फिर भी रहे उदासा !
झुक कर अंजुलि भर अमृत का भोग लगाना होगा
वक्त चुराना होगा !
समय गुजर ना जाए यूँ ही
अंकुर अभी नहीं फूटा है,
सिंचित कर लें मन माटी को
अंतर्मन में बीज पड़ा है !
कितने रैन-बसेरे छूटे यहाँ से जाना होगा
वक्त चुराना होगा !
कोई हाथ बढ़ाता प्रतिपल
जाने कहाँ भटकता है मन,
मदहोशी में डुबा रहा है
मृग मरीचिका का आकर्षण !
उस अनन्त में उड़ना है तो सांत भुलाना होगा
वक्त चुराना होगा !
जग की नैया सदा डोलती
हिचकोले भी कभी लुभाते,
जिन रस्तों से तोबा की थी
लौट-लौट कर उन पर आते !
नई राह चुनकर फिर उस पर कदम बढ़ाना होगा
वक्त चुराना होगा !