हम खुद में कितने रहते हैं
गौर किया है कभी ठहर कर
इत-उत क्यों डोला करते हैं
कभी यहाँ का कभी वहाँ का
हाल व चाल लिया करते हैं
बस खुद का ही रस्ता भूले
दुनिया भर घूमा करते हैं
सब इस पर निर्भर करता है
हम खुद में कितने रहते हैं
मन में हैं पूरे के पूरे
कमियों का रोना रोते हैं
अपनी हालत जानें खुद से
राज यही भूला करते हैं
खो जाता है मन आ खुद में
हम ही रूप धरा करते हैं