मन पाए विश्राम जहाँ

नए वर्ष में नए नाम के साथ प्रस्तुत है यह ब्लॉग !

गुरुवार, सितंबर 29

दिल का मामला

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दिल का मामला जी हाँ, यहाँ मामला दिल का है और बहुत नाजुक है इसका धड़कता रहना हमारी सेहत के लिए कितना आवश्यक है शीशे से भी नाजु...
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बुधवार, सितंबर 28

तू है तो मैं हूँ

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तू है तो मैं हूँ ‘मैं’ हूँ तो ‘तुझे’ होना ही पड़ेगा ‘तू’ से ही ‘मैं’ का वंश चलेगा तुझे बिठाया हमने सातवें आसमान पर अनगिनत गुणों...
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सोमवार, सितंबर 26

कोष भरे अनंत प्रीत के

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कोष भरे अनंत प्रीत के पलकों में जो बंद ख्वाब हैं पर उनको लग जाने भी दो, एक हास जो छुपा है भीतर अधरों पर मुस्काने तो दो ! स...
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शुक्रवार, सितंबर 23

एक अरूप ज्योति बहती है

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एक अरूप ज्योति बहती है पीछे मुड़कर देखें जब तक क्यों न आगे कदम बढ़ा लें, चंद पलों में मिल जाती हैं लहरें मन में नयी जगा लें ! ...
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शुक्रवार, सितंबर 16

आसमान में तिरते बादल

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आसमान में तिरते बादल खुली हवा में शावक बनकर दौड़ लगाते क्यों न जीयें, एक बार फिर बन के बच्चे वर्षा की बूंदों को पीयें ! नाव...
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गुरुवार, सितंबर 15

भोर नयी थामे जब अंगुली

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भोर नयी थामे जब अंगुली महक रहा कण-कण सृष्टि का अनजानी सी गंध बहे है, गुंजित गान सुरीले निशदिन जाने किससे कौन कहे है ! पलको...
मंगलवार, अगस्त 23

छोटा सा जीवन यह सुंदर

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छोटा सा जीवन यह सुंदर थम कर पल दो पल बैठें हम होने दें जो भी होता है, रुकने का भी है आनंद चलना तभी मजा देता है ! स्वयं ही ...
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शुक्रवार, अगस्त 19

झर जाती हर दुःख की छाया

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झर जाती हर दुःख की छाया सभी स्वर्ग क्षण भंगुर होंगे  नर्क सभी अनंत हैं होते, दुःख में समय न कटता पल भर सुख के क्षण बहते ही जाते !...
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शुक्रवार, अगस्त 12

परिभाषाएं हम गढ़ते हैं

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परिभाषाएं हम गढ़ते हैं खुद से ही मिलते रहते हैं जब भी हम बाहर जाते हैं ! दुनिया पल-पल बदल रही है परिभाषाएं हम गढ़ते हैं ! ...
शुक्रवार, अगस्त 5

डूबे हैं आकंठ

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डूबे हैं आकंठ धूसर काले मेघों से आवृत आकाश निरंतर बरस रहा जल की हजार धाराओं से नहा रही हरी-भरी वसुंधरा वृक्ष, घास, लतर, पा...
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गुरुवार, जुलाई 28

नाम प्रेम का लेकर

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नाम प्रेम का लेकर उससे मिलकर जाना हमने प्यार किसे कहते हैं, नाम प्रेम का लेकर कितने,  खेल चला करते हैं ! चले हुकूमत निश...
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मंगलवार, जुलाई 26

ढाई आखर भी पढ़ सकता

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ढाई आखर भी पढ़ सकता उसका होना ही काफी है शेष सभी कुछ सहज घट रहा, जितना जिसको भाए ले ले दिवस रात्रि वह सहज बंट रहा ! स्वर्ण...
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शुक्रवार, जुलाई 22

पावन मौन यहाँ छाया है

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पावन मौन यहाँ छाया है सहज खड़े पत्थर पहाड़ सब जंगल अपनी धुन में गाते, पावन मौन यहाँ छाया है झरने यूँ ही बहते जाते ! वृक्ष ...
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Anita
यह अनंत सृष्टि एक रहस्य का आवरण ओढ़े हुए है, काव्य में यह शक्ति है कि उस रहस्य को उजागर करे या उसे और भी घना कर दे! लिखना मेरे लिये सत्य के निकट आने का प्रयास है.
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