मन पाए विश्राम जहाँ

नए वर्ष में नए नाम के साथ प्रस्तुत है यह ब्लॉग !

शनिवार, दिसंबर 31

नये वर्ष में गीत नया हो

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नये वर्ष में गीत नया हो  राग नया हो ताल नयी हो  कदमों में झंकार नयी हो,  रुनझुन रिमझिम भी पायल की  उर में  करुण पुकार नयी ह...
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गुरुवार, दिसंबर 29

नया वर्ष भर झोली आया

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नया वर्ष भर झोली आया  मन  निर्भार हुआ जाता है  अंतहीन है यह विस्तार, हंसा चला उड़ान भर रहा  खुला हुआ अनंत का द्वार ! मन ...
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बुधवार, दिसंबर 28

शब्द तरंग

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शब्द तरंग  तरंग मात्र ही हैं शब्द  आते हैं और चले जाते हैं  हम ही हैं जो पकड़ लेते हैं उन्हें बीज की तरह  और जमा देते हैं मन ...
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सोमवार, दिसंबर 26

सबके उर में प्रेम बसा है

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सबके उर में प्रेम बसा है  कौन चाहता है बंधन को फिर भी जग बंधते देखा है, मुक्त गगन में उड़ सकता था पिंजरे में बसते देखा है ! फूल...
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मंगलवार, दिसंबर 20

स्वप्नों सी वे झर जाती हैं

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स्वप्नों सी वे झर जाती  हैं  खुशियों को पा लेने का भ्रम  नहीं मिटाता जीवन से गम,  स्वप्नों सी वे झर जाती  हैं  या जैसे फूलों से...
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सोमवार, दिसंबर 19

घर जाना है

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घर जाना है  दृष्टि का ही फेर है सब रात में दिन और दिन में रात नजर आती है जहाँ धूप है खिली वहाँ छाँव जहाँ हो सकते हैं  फूल वहीँ ...
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शुक्रवार, दिसंबर 16

दृष्टि धूमिल मोहित है मन

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दृष्टि धूमिल मोहित है मन   किसी-किसी दिन झूठ बोलता लगता दर्पण नयन दिखाते वही देखना चाहे जो भी मन ! दृष्टि धूमिल मोहित है मन  ...
गुरुवार, दिसंबर 15

निज पैरों का लेकर सम्बल

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निज पैरों का लेकर सम्बल कितनी बार झुकें आखिर हम  कितनी बार पढ़ें ये आखर, जीवन सारा यूँ ही बीता  रहे साधते वीणा के स्वर ! ...
बुधवार, दिसंबर 14

कितना सा था चाहत का घट

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कितना सा था चाहत का घट  श्वासें  भर जाएँ भावों से  हो कृतज्ञ झुक जाये अंतर  जीवन का उपहार मिला है  बहता जैसे महा समंदर ! ...
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मंगलवार, दिसंबर 13

राग प्रीत का जो साधा था

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राग प्रीत का जो साधा था   है विशाल, अनन्त, अनूठा  कैसे लघु मन उसको जाने  शिखर चाहता भय खाई से  सीमा स्वयं की, यह न माने ! ...
सोमवार, दिसंबर 12

जिसकी प्यास अधूरी रब की

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जिसकी प्यास अधूरी रब की दुःख को भी न जाना जिसने  सुख का स्वाद चखे वह कैसे  दुःख को ही जो सुख मानता  सुख हीरे को परखे कैसे ? ...
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रविवार, दिसंबर 11

नींद उड़ी रातों की उनकी

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नींद उड़ी रातों की उनकी   काले धन को गोरा कर लें  इसी जुगत में हैं कुछ लोग, नींद उड़ी रातों की उनकी  भरे तिजोरी में जो नोट ! ...
शनिवार, दिसंबर 10

पा प्रकाश का परस सुकोमल

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पा प्रकाश का परस सुकोमल दानव और दैत्य दोनों ही  मानव के अंतर में रहते, कभी खिलाते  उपवन सुंदर  मरुथल में वे ही भटकाते ! ...
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शुक्रवार, दिसंबर 9

नए इरादे फिर करने हैं

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नए इरादे फिर करने हैं  कुछ हफ्तों की उम्र शेष है  नए वर्ष के दिन चढ़ने हैं, अभी समय है पूरे कर लें नए इरादे फिर करने हैं  ! फि...
गुरुवार, दिसंबर 8

जीवन जैसे एक पहेली

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जीवन जैसे एक पहेली  सुख के पीछे रहे भागते  मुट्ठी खोली दुःख ही था, स्वप्न स्वर्ग के रहे पालते  कदमों तले नर्क ही था ! ...
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Anita
यह अनंत सृष्टि एक रहस्य का आवरण ओढ़े हुए है, काव्य में यह शक्ति है कि उस रहस्य को उजागर करे या उसे और भी घना कर दे! लिखना मेरे लिये सत्य के निकट आने का प्रयास है.
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