मन पाए विश्राम जहाँ

नए वर्ष में नए नाम के साथ प्रस्तुत है यह ब्लॉग !

बुधवार, अक्टूबर 25

मौसम

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मौसम मौसम आते हैं जाते हैं वृक्ष पुनः-पुनः बदला करते हैं रूप हवा कभी बर्फीली हो चुभती है कभी तपाती.. आग बरसाती सी.. शुष्क है...
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रविवार, अक्टूबर 22

एक दीप बन राह दिखाए

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एक दीप बन राह दिखाए अंतर दीप जलेगा जिस पल तोड़ तमस की कारा काली , पर्व ज्योति का सफल तभी है उर छाए अनन्त उजियाली ! एक दीप ...
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शुक्रवार, अक्टूबर 13

जिन्दगी हर पल बुलाती

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जिन्दगी हर पल बुलाती किस कदर भटके हुए से राह भूले चल रहे हम, होश खोया बेखुदी में लुगदियों से गल रहे हम ! रौशनी थी, था ...
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बुधवार, अक्टूबर 11

सुख-दुःख

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सुख-दुःख  सुख की तृष्णा एक भ्रम ही तो है दुःख की पकड़ ही असली चीज दुःख अपने होने का सबूत देता है सुख है खुद को मिटाने की तरकी...
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सोमवार, अक्टूबर 9

लीला एक अनोखी चलती

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लीला एक अनोखी चलती  सारा कच्चा माल पड़ा है वहाँ अस्तित्त्व के गर्भ में.... जो जैसा चाहे निर्माण करे निज जीवन का ! मह...
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सोमवार, सितंबर 25

एक पुहुप सा खिला है कौन

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एक पुहुप सा खिला है कौन  एक निहार बूँद सी पल भर किसने देह धरी, एक लहर सागर में लेकर किसका नाम चढ़ी ! बिखरी बूँद लहर डूब...
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शुक्रवार, सितंबर 22

अब नया-नया सा हर पल है

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अब नया-नया सा हर पल है अब तू भी याद नहीं आता अब मस्ती को ही ओढ़ा है , अब सहज उड़ान भरेगा मन जब से हमने भय छोड़ा है ! वह भी...
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सोमवार, सितंबर 18

एक कलश मस्ती का जैसे

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एक कलश मस्ती का जैसे बरस रहा सावन मधु बन कर या मदिर चाँदनी मृगांक की, एक कलश मस्ती का जैसे भर सुवास किसी मृदु छंद की ! ...
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गुरुवार, सितंबर 14

हिंदी दिवस पर

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हिंदी दिवस पर उन अनगिनत साहित्यकारों को विनम्र नमन के साथ समर्पित जिनके साहित्य को पढ़कर ही भीतर सृजन की अल्प क्षमता को प्रश्रय मिल...
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बुधवार, सितंबर 13

जाने कब वह घड़ी मिलेगी

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जाने कब वह घड़ी मिलेगी    तुमको ही तुमसे मिलना है  खुला हुआ अविरल मन उपवन,  जब जी चाहे चरण धरो तुम सदा गूंजती मृदु धुन अर्चन...
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सोमवार, सितंबर 11

रस मकरंद बहा जाता है

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रस मकरंद बहा जाता है अंजुरी क्यों रिक्त है अपनी  रस मकरंद बहा जाता है, साज नवीन सजे महफिल में  सन्नाटा क्यों कर भाता है ! ...
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शुक्रवार, सितंबर 8

एक अजब सा खेल चल रहा

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एक अजब सा खेल चल रहा इक ही धुन बजती धड़कन में इक ही राग बसा कण-कण में , एक ही मंजिल ,  रस्ता एक इक ही प्यास शेष जीवन में !...
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मंगलवार, सितंबर 5

ढाई आखर भी पढ़ सकता

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ढाई आखर भी पढ़ सकता उसका होना ही काफी है शेष सभी कुछ सहज घट रहा, जितना जिसको भाए ले ले दिवस रात वह सहज बंट रहा ! स्वर्ण रश्...
7 टिप्‍पणियां:
शुक्रवार, सितंबर 1

अनकहे गीत बड़े प्यारे हैं

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अनकहे गीत बड़े प्यारे हैं जो न छंद बद्ध हुए बिल्कुल कुंआरे हैं तिरते अभी गगन में   गीत बड़े प्यारे हैं ! जो न अभी हुए मुखर ...
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Anita
यह अनंत सृष्टि एक रहस्य का आवरण ओढ़े हुए है, काव्य में यह शक्ति है कि उस रहस्य को उजागर करे या उसे और भी घना कर दे! लिखना मेरे लिये सत्य के निकट आने का प्रयास है.
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