मन पाए विश्राम जहाँ

नए वर्ष में नए नाम के साथ प्रस्तुत है यह ब्लॉग !

मंगलवार, नवंबर 30

हम खुद में कितने रहते हैं

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हम खुद में कितने रहते हैं  गौर किया है कभी ठहर कर  इत-उत क्यों डोला करते हैं  कभी यहाँ का कभी वहाँ का  हाल व चाल लिया करते हैं  बस खुद का ही...
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सोमवार, नवंबर 29

चाहे तो

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चाहे तो  कभी कुछ भी नहीं बिगड़ता इतना कि सुधारा ही न जा सके  एक किरण आने की  गुंजाइश तो सदा ही रहती है ! माना  कि अंधेरों में कभी  विष के बी...
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रविवार, नवंबर 28

कहानी एक दिन की

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कहानी एक दिन की दिनकर का हाथ बढ़ा उजियारा दिवस चढ़ा, अंतर में हुलस उठी दिल पर ज्यों फूल कढ़ा ! अपराह्न की बेला किरणों का शुभ मेला, पढ़कर घर लौट ...
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शुक्रवार, नवंबर 26

जाग भीतर कौन जाने

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जाग भीतर कौन जाने   एक का ही है पसारा गुनगुनाता जगत सारा, निज-पराया, अशुभ-शुभता, स्वप्न में मन बुने कारा ! मित्र बनकर स्नेह करता  शत्रु बन ख...
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बुधवार, नवंबर 24

नया दिन

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नया दिन  मिलता है कोरे काग़ज़ सा  हर नया दिन  जिस पर इबारत लिखनी है  ज्यों किसी ख़ाली कैनवास पर  रंगों से अनदेखी आकृति भरनी है  धुल-पुंछ गयी...
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सोमवार, नवंबर 22

खिला-खिला मन उपवन होगा

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खिला-खिला मन उपवन होगा  एक अनेक हुए दिखते हैं  ज्यों सपने की कोई नगरी,  मन ही नद, पर्वत बन जाता  एक चेतना घट-घट बिखरी ! कैसे स्वप्न रात्रि म...
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बुधवार, नवंबर 17

मन उपवन

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मन उपवन  शब्दों के जंगल उग आते हैं  घने और बियाबान  तो सूर्य का प्रकाश  नहीं पहुँच पाता भूमि तक  मन पर सीलन और काई  की परतें जम जाती हैं  जि...
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गुरुवार, नवंबर 11

हर कोई अपने जैसा है

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हर कोई अपने जैसा है  ​ न ऐसा न ही वैसा है, बस   हर कोई अपने जैसा है ! भोला शावक भरे कुलाँचे  वनराजा की शान अनोखी,  गाँव की ग्वालिनें प्यारी ...
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मंगलवार, नवंबर 9

मन चातक सा तकता रहता

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मन चातक सा तकता रहता  सागर के तट पर बैठा हो   फिर भी कोई, प्यासा ! कहता,  जीवन बन उपहार मिला है  मन चातक सा तकता रहता ! अभी बनी खोयी पल भर म...
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रविवार, नवंबर 7

सुनहरे भविष्य की

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सुनहरे भविष्य की  आशा अमरबेल सी  जीवन के वृक्ष पर लिपटी है  अवशोषित करती जीवन का रस  सदा भविष्य के सपने दिखाती  जबकि प्रीत की सुवास भीतर सिम...
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शुक्रवार, नवंबर 5

रहें सदा दिल मिले हमारे

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रहें सदा दिल मिले हमारे ज्योति जले ज्यों हर घर-बाहर  गलियाँ , सड़कें, छत, चौबारे,  मन में प्रज्ज्वलित स्नेह प्रकाश  रहें सदा दिल मिले हमारे ...
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बुधवार, नवंबर 3

जब अंतरदीप नहीं बाले

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जब अंतरदीप नहीं बाले पूर्ण हुआ वनवास राम का,  सँग सीता के लौट रहे हैं  हुआ अचंभा देख लखन को ,  द्वार अवध के नहीं खुले हैं ! अब क्योंकर उत्सव...
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सोमवार, नवंबर 1

मर कर जो जी उठा

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मर कर जो जी उठा  ​​जीवन का मर्म खुला  दूजा जब जन्म हुआ,  मर कर जो जी उठा  उसको ही भान हुआ ! मृत्यु का खटका सदा  कदमों को रोकता,  ‘मैं हूँ’ क...
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शुक्रवार, अक्टूबर 29

टेर लगाती इक विहंगिनी

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टेर लगाती इक विहंगिनी इन्द्रनील सा नभ नीरव है लो अवसान हुआ दिनकर का, इंगुर छाया पश्चिम में ज्यों   हो श्रृंगार सांध्य बाला का ! उडुगण छुपे ह...
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मंगलवार, अक्टूबर 26

जाना है उस दूर डगर पर

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जाना है उस दूर डगर पर दिल में किसी शिखर को धरना सरक-सरक कर बहुत जी लिए, पंख लगें उर की सुगंध को गरल बंध के बहुत पी लिए ! जाना है उस दूर डगर ...
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Anita
यह अनंत सृष्टि एक रहस्य का आवरण ओढ़े हुए है, काव्य में यह शक्ति है कि उस रहस्य को उजागर करे या उसे और भी घना कर दे! लिखना मेरे लिये सत्य के निकट आने का प्रयास है.
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