छू सकते आसमान
जो मिला ही हुआ है
नहीं देखते आँख उठाकर भी
उसकी ओर..
बिछड़ने ही वाला है जो
थामना चाहते हैं उसे
जो है, अस्वीकार करने में उसे
नहीं लगती पल भर की भी देर...
जो हो नहीं सकते
दौड़ लगाते हैं उसकी ओर...
विद्यार्थी, बना रहे विद्यार्थी यदि
आत्महत्याएँ हों न शिक्षालयों में
पत्नी हो पाए एक पत्नी
सीख ले पति, पति होना
बच जाएँ कितने घर गृहयुद्धों से
बच्चे निभाने दें
माँ पिता को अपनी भूमिका
तो प्रेम की एक डोर
बांधे रहे उन्हें आजीवन....
अध्यापक तज देता है अध्यापन
करने के लिये व्यापार
दुरूपयोग करे अधिकारी, अधिकार
बेमन से करे कृषि कर्म कृषक
हर इक गाँव बनना चाहता हो शहर..
हिल जायेगी सारी व्यवस्था
एक नन्हा सा पुर्जा भी मशीन का
हिल जाये जब
दिख ही जाती है उसकी व्यर्थता
हम जो हैं, रखे गए हैं जहाँ
बेशकीमती है वह स्थान
छूया जा सकता है आकाश
उस स्थान से भी...
नाप सकते हैं सागरों की गहराई
उस स्थान से भी....
पूर्ण है हर कर्म
पूर्ण है हर प्राणी
पूर्ण है हर सम्बन्ध
यदि समझ है पूर्ण इंसान की...