मन पाए विश्राम जहाँ

नए वर्ष में नए नाम के साथ प्रस्तुत है यह ब्लॉग !

शनिवार, अक्टूबर 19

मन माँगे मोर

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मन माँगे मोर कहीं वह जंगल में नाचने वाला मोर तो नहीं, जो मन माँगता है है खुद भी तो मयूर पर   यह नहीं जानता है...   य...
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शुक्रवार, अक्टूबर 18

उसका नाम

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उसका नाम जब कोरा हो मन का पन्ना तभी लिख लो प्रियतम का नाम उस पर नहीं तो जमाना लिख देगा इधर-उधर की इबारतें महत्वाकांक्षा ...
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मंगलवार, अक्टूबर 15

दिल को ही अम्बर कर लें

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दिल को ही अम्बर कर  लें   शब्दों में वह नहीं समाये दिल को ही अम्बर कर लें, कैसे जग को उसे दिखाएँ रोम-रोम में जो भर लें ! ...
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रविवार, अक्टूबर 13

बहे उजाला मद्धिम-मद्धिम

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बहे उजाला मद्धिम-मद्धिम बरस रहा है कोई अविरत  झर-झर झर-झर, झर-झर झर-झर भीग रहा न कोई लेकिन ढूँढे जाता सरवर, पोखर ! प्रीत...
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बुधवार, अक्टूबर 9

तृप्ति भीतर ही पलती

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तृप्ति भीतर ही पलती एक यात्रा बाहर की है एक यात्रा भीतर चलती, बाहर सीमा राहों की है अंतर में असीमता मिलती ! बाहर प्...
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शनिवार, सितंबर 28

उड़ न पाते हम गगन में

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उड़ न पाते हम गगन में गुनगुनी सी आग भीतर कुनकुना सा मन का पानी, एक आशा ऊंघती सी रेंगती सी जिन्दगानी ! फिर भला क्यों कर ...
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शुक्रवार, सितंबर 27

हम

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हम पिछली सदी के उत्तरार्ध में आते-आते हम आजाद हो गये थे खुशहाली का सपना सच होने को था  “धरा अपनी गगन अपना जन्नत सा लगे...
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बुधवार, सितंबर 25

मन

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मन मन जब चहकते पंछियों की तरह  मुंडेर पर बैठ जाता है निरुद्देश्य.. बादलों के बनते बिगड़ते रूप  आँखों में भर जाते हैं जान...
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सोमवार, सितंबर 23

बच्चे

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बच्चे मुस्कानों की खेती करते स्वयं हँसते औरों को हँसाते सदा बिखेरें धूप ख़ुशी की न गम के बादल उन पर डालो ! अपनापन झलके आँख...
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शनिवार, सितंबर 21

किसने कहा होगा

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किसने कहा होगा ? पुकारो ! एक बार फिर  मेरा आधा-अधूरा नाम उन तमाम हसरतों के साथ पुकारो कि मेरा वजूद सही हो मन को सोच के त...
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गुरुवार, सितंबर 19

चलो, अब घर चलें

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चलो, अब घर चलें बहुत घूमे बहुत भटके कहाँ-कहाँ नहीं अटके,  बहुत रचाए खेल-तमाशे बहुत कमाए तोले माशे ! अब तो यहाँ से टलें...
10 टिप्‍पणियां:
सोमवार, सितंबर 16

विश्वकर्मा पूजा पर ढेरों शुभकामनायें

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विश्वकर्मा पूजा पर ढेरों शुभकामनायें  एक भोर उजास भरी जिस दिन आएगी भारत में स्वप्न सृजन का दृग खोलेगा, कर्मठता का ह...
7 टिप्‍पणियां:
शनिवार, सितंबर 14

लड़कियाँ

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लड़कियाँ बड़ी समझदार, थोड़ी नादान खुद से अनजान, करतीं पहचान वर्तमान और भविष्य की कड़ी लड़कियाँ ! हवा सी तेज, पानी सा...
24 टिप्‍पणियां:
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यह अनंत सृष्टि एक रहस्य का आवरण ओढ़े हुए है, काव्य में यह शक्ति है कि उस रहस्य को उजागर करे या उसे और भी घना कर दे! लिखना मेरे लिये सत्य के निकट आने का प्रयास है.
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