साधना
वह, जो है
वह, जो अनाम है
पाया जा सकता है
उसका पता, उससे
वह, जो नहीं है
जो नहीं है
पर होने का भ्रम जगाता है
स्वीकार कर लेता है जब
न होने को अपने
तब झलक जाता है वह, जो है
और तब जो नहीं है
बन जाता है वह जो है
कुछ नहीं से
सब कुछ बन जाना ही
साधना है
देह व मन को भी
यही भेद जानना है
कि वे नहीं हैं अपने आप में कुछ
और तब वे जुड़ जाते हैं विराट से
एक विशाल मन ही
चलाता है सारे मनों को
पंचभूत चलाते हैं
सारी देहों को !
जो उनका रहस्य समझ पाये
जवाब देंहटाएंवो भवसागर से तर जाये
साधन मात्र बनकर रहने वाले
अर्थ साधना का भला कैसे समझ पाये?
गहन भाव लिए सुंदर अभिव्यक्ति
सस्नेह
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २४ जनवरी २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
सुंदर प्रतिक्रिया हेतु और रचना को पाँच लिंकों का आनंद में सम्मिलित करने के लिए ह्रदय से आभार श्वेता जी !
हटाएंsoch mein daalne vaali kavita Anita ji... aur ant ki lines bahut sundar tareeke se baat ko poorn karti hain.
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंस्वागत व आभार मीना जी ! प्रयास रहना चाहिए
जवाब देंहटाएंपञ्च भूत जीवन का संचालन करते हैं ... सत्य कहा है ...
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