शनिवार, जनवरी 25

मज़दूर

मज़दूर 


घास काटने की मशीन का शोर 

आ रहा है अनवरत 

साथ में उस तेल की गंध 

जो मज़दूर ने मशीन में डाला होगा 

जनवरी की एक सुबह 

पर धूप इतनी तेज है 

मानो दोपहर का समय हो 

मुँह को कपड़े से ढाँपे वह दत्तचित्त होकर 

काटता जा रहा है 

घरों के आगे बने बगीचों की घास 

शायद सारा दिन उसे यही करना है आज 

घास के छोटे-छोटे तिनके 

चिपक जाते हैं उसके कपड़ों पर 

शायद अभ्यस्त हो चला होगा 

उन लाखों मज़दूरों की तरह 

जो बंद फ़ैक्टरियों में काम करते हैं 

शोर और अजीब-अजीब गंधों के बीच 

या उन खदान मज़दूरों की तरह 

जो धरती से नीचे कितनी गहराई में 

ख़तरों का सामना करते हैं 

मालिकों के लिए 

सोना, चाँदी और कोयला लाकर 

उनके ख़ज़ाने भरते हैं !


10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में रविवार 26 जनवरी 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

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  2. कैसा लगता होगा, घास जैसी प्यारी चीज को काटना? और उन लोगों के बारे में सोचना, जो घास को भी अपनी पसंद की ऊंचाई पर रखना चाहते हैं?

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    1. कैसा लगता होगा यह तो पता नहीं, पर घास यदि न काटी जाए तो एक जंगल सा उग जाएगा, स्वागत व आभार !

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