जीवन स्रोत
उस भूमि पर टिकना होगा
जहाँ प्रेम कुसुमों की गंध भरे भीतर
सत्य की फसल उगती है
जहां अभेद के तट हैं
शांति की नदी बहती है
जब जगत में विचरने की बारी आये
तब भी उस भूमि की याद मिटने न पाये
जहां एकत्व है और स्वतंत्रता
अटूट शाश्वत समता
जो अर्जित की गई है
पूर्णता की धारा से
जहाँ आश्रय मिलता है
हर तुच्छता की कारा से
वहीं ठिकाना हो सदा मन का
जो स्रोत है हर जीवन का !
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 13 फ़रवरी 2025 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
बहुत बहुत आभार !
हटाएंसुंदर सृजन अनीता जी ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार शुभा जी !
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में शनिवार 15 फरवरी 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार !
हटाएंजो जीवन अपनी जड़ से जुड़ता है । उसका संतोष और आत्मिक आनंद ईश्वर सा परम मीठा और वर्णन से परे होता है ।
जवाब देंहटाएंसही कहा है आपने, स्वागत व आभार प्रियंका जी !
हटाएंबहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
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