मंगलवार, फ़रवरी 18

चाह

चाह


स्वयं को केंद्र मानकर

दूसरे को चाहना 

पहली मंजिल है

जो हर कोई पा लेता है 

दूसरे को केंद्र मानकर

स्वयं को समर्पित कर देना 

दूसरी मंज़िल है 

जिसकी तलाश पूरी होने में

 समय लगता है 

न स्वयं, न दूसरे को 

अस्तित्त्व को केंद्र मान

मुक्त हो जाना है

अंतिम सोपान 

खुद से पार चला जाये जब कोई

तब सिद्ध होता है अभिप्राय

काश ! सबके जीवन में

जल्दी ही ऐसा दिन आए !



12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुंदर और मंगल कामना है । ईश्वर यह कामना पूर्ण करे ।

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  2. बहुत बहुत आभार दिग्विजय जी !

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  3. sateek aur sundar rachna!! Kitne kam shabdon mein kitni gehri baat!

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  4. 'खुद से पार चला जाये जब कोई

    तब सिद्ध होता है अभिप्राय' वाह! बहुत बढ़िया!

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  5. खुद से पार चला जाए जब कोई....मुश्किल है बहुत साधारण जन के लिए तो ...
    बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति ..!

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    1. कबीर ने भी कहा है, खाला का घर नाहीं, स्वागत व आभार शुभा जी !

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  6. मोह माया में फंसे हम इंसानों का खुद से पार जाना ही तो मुश्किल है।

    चंद पंक्तियों में गहरे भाव को सहेजे सुंदर रचना।

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