मन
नींदों के पनघट पे
यादों को बुनता है,
ख़्वाबों के झुरमुट में
शब्द पुष्प चुनता है !
भावों की माला रच
ताल में पिरोता है,
अर्पित कर चरणों में
अश्रु में भिगोता है !
जाने क्या पाएगा
गीत रोज़ गाता है,
तारों से बात करे
चंदा संग जगता है !
किसकी वह राह तके
किसको पुकारे सदा,
शब्दों की नाव बना
मन, सागर तिरता है !
बहुत ही सुंदर गीत !
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार प्रियंका जी !
हटाएंअद्भुत भाव.., गहन सृजनशीलता.., पढ़कर मन अभिभूत हो उठा । सादर नमस्कार अनीता जी !
जवाब देंहटाएंकविता के मर्म तक पहुँच कर ही ऐसा होता है, स्वागत व आभार मीना जी !
हटाएंVery Nice Post.....
जवाब देंहटाएंWelcome to my blog
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में सोमवार 24 फरवरी 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार दिग्विजय जी !
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंवाह! बहुत सुंदर पंक्तियां।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंVery Nice Post.....
जवाब देंहटाएंWelcome to my blog !
वाह लाजवाब रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंएकदम सुगढ़ सुंदर शब्द शिल्प. चित्र जैसे सजीव हो उठे.
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार मीना जी !
हटाएंकमाल का गीत ... शब्द ही अभिव्यक्ति है ...
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
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