नए वर्ष में नए नाम के साथ प्रस्तुत है यह ब्लॉग !
तेरी चाहत ने दिल को
जो झुककर पाया हमने
वह सुकूं कहाँ मिल सकता,
मूल तुझी से है जिसका
वह फूल कहाँ खिल सकता !
भरा रहमतों से ऐसे,
भला तेरे बिन कब कोई
फ़ितरत यह बदल सकता !
तू है तो यह दुनिया है
तुझसे ही धड़कन दिल की,
तू भीतर-बाहर हर सूँ
अब जरा नहीं छिप सकता !
beautiful!
welcome !
बहुत सुंदर ! परमात्मिक आनंद का मधुरिम रस अब कहाँ छिपा सकता है ...
स्वागत व आभार प्रियंका जी !
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 14 अप्रैल 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
बहुत बहुत आभार यशोदा जी !
beautiful!
जवाब देंहटाएंwelcome !
हटाएंबहुत सुंदर ! परमात्मिक आनंद का मधुरिम रस अब कहाँ छिपा सकता है ...
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार प्रियंका जी !
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 14 अप्रैल 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार यशोदा जी !
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