शनिवार, अप्रैल 12

तेरी चाहत ने दिल को

तेरी चाहत ने दिल को 


जो झुककर पाया हमने 

वह सुकूं कहाँ मिल सकता, 

 मूल तुझी से है जिसका

वह फूल कहाँ खिल सकता !


तेरी चाहत ने दिल को 

भरा रहमतों से ऐसे, 

भला तेरे बिन कब कोई 

फ़ितरत यह बदल सकता !


तू है तो यह दुनिया है 

तुझसे ही धड़कन दिल की, 

तू भीतर-बाहर हर सूँ 

अब जरा नहीं छिप सकता !




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