वेद ऋषि
वे जो भावों की नदियाँ बहाते हैं
वे जो शब्दों की फसलें उगाते हैं
बाड़ लगाते हैं विचारों की
उन्हें कुछ मिला है
शायद किसी बीज मंत्र सा
जिसे बोकर वे बाँटना चाहते हैं
कुछ पाया है जिसे लुटाना है
माना कि वे बीजों के जानकार नहीं
पर आनन्दग्राही हैं
प्रेम को चखा है
और रस से भरा है
लबालब उनका अंतर
वे अनायास ही आ गये हैं
उस घेरे में
जहाँ मौन प्रखर हो जाता है
और वहीं कोई कान्हा
बंसी बजाता है !
अतीव सुरमय रसमय दिल को छूती प्यारी रचना मनमोहना कान्हा का प्रेमाशीष झलक उठा है ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार प्रियंका जी !
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
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