गुरुवार, अप्रैल 24

पहलगाम में आतंक

पहलगाम में आतंक 

 

कातर असीम दुख से

हर भारतीय का ह्रदय

उबल रहा हर मन 

क्रोध और बेबसी से 

देख आतंक का ऐसा भयावह रूप 

नम हैं करोड़ों आँखें 

  कानों में गूँजती 

 चीख-पुकार उन निर्दोष पर्यटकों की

जिन्हें मौत के घाट उतारा गया

 परिजनों के सामने 

वह नव विवाहिता 

 बैठी पति की मृत देह के समीप 

जैसे बैठी हो सावित्री  

पर जीवित नहीं होगा उसका सत्यवान

पत्नी और पुत्र के सामने गोली उतार दी 

जिस व्यक्ति के सीने में 

 दिल चीर देती है उनकी मुस्कान

जब कश्मीर को जन्नत बता रहे थे 

 एक दिन पहले शिकारे में बैठे हुए 

कश्मीर में कितना खून बहा है 

पर आतंक का ऐसा घिनौना रूप 

शायद पहली बार दिखा है 

नाम पूछ और पढ़वा कलमा 

जहाँ क़त्ल तय किया गया

हुई मानवता की नृशंस हत्या 

जहाँ अब नहीं जाएँगे यात्री 

सूना रह जाएगा पहलगाम और गुलमर्ग 

नहीं देखेगा कोई डल झील की ख़ूबसूरती 

क़िस्मत बदल रही थी जब कि 

दशकों बाद कश्मीर की !


4 टिप्‍पणियां:

  1. निःशब्द ...
    सादर।
    ------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २५ अप्रैल २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं