मन पाए विश्राम जहाँ

नए वर्ष में नए नाम के साथ प्रस्तुत है यह ब्लॉग !

रविवार, नवंबर 29

कोई एक

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  कोई एक  युगों-युगों से बह रही है  मानवता की अनवरत धारा  उत्थान -पतन, युध्द और शांति के तटों पर  रुकती, बढ़ती  शक्तिशाली और भीरु  समर्थ और व...
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गुरुवार, नवंबर 26

आहट

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आहट अनजाने रस्तों से कोई आहट आती है बुलाती है सहलाती सी लगती कौतूहल से भर जाती है जाने किस लोक से भर जाती आलोक से मुदित बन जात...
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बुधवार, नवंबर 25

जीवन क्या है ?

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  जीवन क्या है ? स्थूल से सूक्ष्म तक जाने की यात्रा अथवा ज्ञात से अज्ञात को  दृश्य से अदृश्य को पकड़ने की चाह रूप के पीछे अरूप ध्वनि के पीछे ...
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मंगलवार, नवंबर 24

स्वामी-दास

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स्वामी-दास   कोई स्वामी है कोई दास   है अपनी-अपनी फितरत की बात किसका ? यह है वक्त का तकाजा   स्वामी माया का चैन की नींद सोता   ...
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सोमवार, नवंबर 23

आदमी

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आदमी   कली क्या करती है फूल बनने के लिए विशालकाय हाथी ने क्या किया निज आकार हेतु व्हेल तैरती है जल में टनों भार लिए वृक्ष छूने लगत...
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शनिवार, नवंबर 21

देखे वह अव्यक्त छिपा जो

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देखे वह अव्यक्त छिपा जो कंकर-कंकर में है शंकर  अणु-अणु में बसते महाविष्णु,  ब्रह्म व्याप्त ब्राह्मी सृष्टि में  क्यों भयभीत कर रहा विषाणु ! ...
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शुक्रवार, नवंबर 20

प्रेम से कोई उर न खाली

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  प्रेम से कोई उर न खाली   एक बूंद ही प्रेम अमी की जीवन को रसमय कर देती, एक दृष्टि  आत्मीयता की अंतस को सुख से भर देती !   प्र...
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गुरुवार, नवंबर 19

ढाई आखर प्रेम के

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ढाई आखर प्रेम के ‘प’ से परस स्नेह भरा आश्वस्त करता हुआ भीतर की सारी शुभता को प्रियतम में भरता हुआ परख ले जो अंतर की अकुलाहट पनपा दे अनायास ह...
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मंगलवार, नवंबर 17

खत

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खत  किसी सूनी शाम को  हथेलियों पर ठोड़ी टिकाये  लिखने वाली मेज पर बैठे  कोई बात फड़फड़ायी होगी तुम्हारे मन में  लिखो फिर काट दो  तकते रहो  निरु...
11 टिप्‍पणियां:
सोमवार, नवंबर 16

परिचित जो अंतर पनघट से

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परिचित जो अंतर पनघट से जग जैसा है बस वैसा है हर नजर बताती कैसा है   कोई इक बाजार समझता कोई खालिस प्यार समझता विकट किसी को सागर...
9 टिप्‍पणियां:
गुरुवार, नवंबर 12

लो फिर आयी विमल दीवाली

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  लो फिर आयी विमल दीवाली   जगमग दीप जले पंक्ति में  बन्दनवार लगे हर द्वारे  सजी दिवाली महके जन पथ  तोरण सजे गली चौबारे  उठी सुगन्ध गुजिया, म...
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बुधवार, नवंबर 11

कुछ ख्याल

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कुछ ख्याल   हजार राहे हैं जिनसे गुजर के तू मिलता है  किसी बाग में कमल कभी गुलाब बना खिलता है  हरेक मुट्ठी में कैद है एक आसमां अपना  जब जो ख्...
7 टिप्‍पणियां:
मंगलवार, नवंबर 10

निकट समंदर बहता जाता

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निकट समंदर बहता जाता जाग-जाग कर फिर सो जाता नींदों में मन स्वप्न दिखाता, रंग-रूप-रस-गंध खान में  निज आनंद छुपा रह जाता !   घूँट-...
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Anita
यह अनंत सृष्टि एक रहस्य का आवरण ओढ़े हुए है, काव्य में यह शक्ति है कि उस रहस्य को उजागर करे या उसे और भी घना कर दे! लिखना मेरे लिये सत्य के निकट आने का प्रयास है.
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