मन पाए विश्राम जहाँ

नए वर्ष में नए नाम के साथ प्रस्तुत है यह ब्लॉग !

मंगलवार, नवंबर 1

नव भारत का निर्माण करें

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नव भारत का निर्माण करें  स्वर्णिम युग इस भू पर लाने  योग धर्म का ध्वज लहराने,  व्यर्थ जले,   रहे शेष सार्थक मिलकर हम यही प्रयास करें ! नव भा...
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शनिवार, अक्टूबर 29

तंतु प्रेम का

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तंतु प्रेम का   कितना भी हो  पीढ़ियों का अंतर  उन्हें प्रेम का तंतु जोड़े रहता है  क्या कहें, कितना कहें  यह ज्ञान नहीं होता  जब अहंकार के त...
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गुरुवार, अक्टूबर 27

प्रकट और अप्रकट

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प्रकट और अप्रकट  जगत  बुना है  प्रकट और अप्रकट    तन्तुओं से  मन  कुछ-कुछ ज़ाहिर होता है कर्मों से  कुछ छिपा ही रहता है भीतर  कितना छुपाना ह...
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मंगलवार, अक्टूबर 25

दिवाली की अगली भोर

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दिवाली की अगली भोर  सूर्य ग्रहण लगने वाला है  किंतु अभी है शेष  उजाला  उन दीयों का  जो बाले थे बीती रात  जगमग हुईं थी राहें सारी  गली-गली, ह...
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सोमवार, अक्टूबर 24

आलोकित होगा जीवन पथ

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आलोकित होगा जीवन पथ तन माटी का इक घट जिसमें  मन कल-कल जल सा नित बहता,  परितप्त हुआ फिर  शीतल सा   बन वाष्प  उड़ा  नभ में जाता !   या तन माटी...
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शुक्रवार, अक्टूबर 21

दीपावली

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दीपावली  दिव्य प्रकाश, उजास, बिखेरे  दीपावली तमस हर लेती,   द्युति, आलोक, ज्योति, उजियारा हर कोना जगमग कर देती ! माटी के दीपों का वैभव  अंतर...
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बुधवार, अक्टूबर 19

सत्य

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सत्य  सत्य अमोघ है  आग है  शीतल जलाभिषेक है  इससे कोई बच नहीं  सकता  सत्य हुए बिना कोई चैन से जी नहीं सकता  इसका एक कण झूठ के हजार पर्वतों स...
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मंगलवार, अक्टूबर 18

भाव सधे तो प्रेम खिलेगा

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भाव सधे तो प्रेम खिलेगा  जितना दौड़ो कम पड़ता है यह जग अंधा एक कुआँ है, कभी तृप्त  कब हो सकता यह सदा अधूरा ही मिलता है ! दो पल थम कर खुद सँग ह...
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शनिवार, अक्टूबर 15

जीवन शतरंज बिछा

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जीवन शतरंज बिछा जो दर्द छुपा भीतर  खुद हमने गढ़ा जिसको,  नाजों से पाला है  स्वयं बड़ा किया उसको ! हमने ही माँगा है  ताकत यह हमारी है,  यदि मुक...
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गुरुवार, अक्टूबर 13

अभय

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अभय  सूरज की एक किरण  सागर की एक बून्द  सारी पृथ्वी की धूल का एक कण  अनंत ध्वनियों में एक स्वर  हम वही हैं  पर जब जुड़े हैं स्रोत से  तो कोई ...
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मंगलवार, अक्टूबर 11

यज्ञ भीतर चल रहा है

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यज्ञ भीतर चल रहा है श्वास समिधा बन सँवरती प्रीत जगती की सुलगती, मोह कितना छल रहा था सहज सुख अब पल रहा है ! मंत्र भी गूजें अहर्निश ज्योति माल...
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रविवार, अक्टूबर 9

अभी शेष है जीना

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अभी शेष है  जीना जीने की तैयारी में ही  लग जाती है सारी ऊर्जा  घर को सजाते-सँवारते  थक जाते हैं प्राण   मन को सहेजते-सहेजते   चुक जाती है शक...
11 टिप्‍पणियां:
मंगलवार, अक्टूबर 4

जितना खुद को बाँटा जग में

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जितना खुद को बाँटा जग में    जितना  ‘मैं’ ‘तुझमें’ रहता है  उतने से ही मिल पाता है,  खुद की ही तलाश में हर दिल   दूजों  के घर-घर जाता है !  ...
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यह अनंत सृष्टि एक रहस्य का आवरण ओढ़े हुए है, काव्य में यह शक्ति है कि उस रहस्य को उजागर करे या उसे और भी घना कर दे! लिखना मेरे लिये सत्य के निकट आने का प्रयास है.
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