आया बसंत
सरसों
के पीले फूलों पर
गुनगुन
गाते डोल रहे हैं,
मतवाले
मदमस्त भ्रमर ये
कौन
सी भाषा बोल रहे हैं ?
पात
झरे भई शाख गुलाबी
आड़ू
के वृक्ष इतराते,
सूनी
डालें सहजन की सज
आसमान
से करती बातें !
कंचन
भी कतार में खड़ा
गुपचुप
भीतर गुनता है कुछ,
माह
फरवरी आया है तो
वह
भी है खिलने को आतुर
सारी
कायनात महकी है
घुली
पवन में मादक गंध,
रस
की कोई गागर छलके
बहा
जा रहा है मकरंद !
मन
को सुमन बना, कर अर्पित
मुस्कानों
को खुली छूट दें,
प्रीत
की इक रस धार बहाकर
ये
अनंत सौगात लूट लें !
बहुत सुंदर वर्णन प्रकृति का । ये बदलाव सब को खुश कर देता है ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार मधुलिका जी..आपके तो नाम में ही मधु छिपा है..
हटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन और 'देशद्रोही' में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार हर्षवर्धन जी..आपने भी इस पोस्ट को शामिल करके इस ब्लॉग का मान बढ़ाया है..
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 11 फरवरी 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार यशोदा जी..
हटाएंसुन्दर चित्रण एवं सुन्दर बासंति गान ।
जवाब देंहटाएंबसंत का बहुत सुंदर और मनोहारी चित्रण
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर
महकी महकी रचना । अति सुंदर ।
जवाब देंहटाएंप्रदीप जी, ज्योति जी व अमृता जी, स्वागत व आभार !
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