बुधवार, मार्च 28

एक नगमा जिन्दगी का


एक नगमा जिन्दगी का


एक दरिया या समन्दर
बह रहा जो प्रीत बनकर,
बाँध मत बाँधें तटों पर
उमग जाये छलछलाकर !

एक प्यारी सी हँसी भी
कैद है जो कन्दरा में,
कसमसाती खुदबुदाती
बिखर जाएगी जहाँ में !

एक नगमा जिन्दगी का
शायराना इक फसाना,
दिलोबगिया में दबा जो
बीज महके बन तराना !

एक जागी रात आये
ख्वाब नयनों में सजाये,
दूर से आती सदा को
ला निकट कुहु गीत गाये !

एक नर्तन आत्मा का
ढोल की थापें अनूठी,
बाल दे अनुपम उजाला
बाँसुरी, वीणा की ज्योति

शनिवार, मार्च 17

भीतर एक स्वप्न पलता है




भीतर एक स्वप्न पलता है



आहिस्ता से धरो कदम तुम
हौले-हौले से ही डोलो,
कंप न जाये कोमल है वह
वाणी को भी पहले तोलो !

कुम्हला जाता लघु पीड़ा से
हर संशय बोझिल कर जाता,
भृकुटी पर सलवट छोटी सी
उसका आँचल सिकुड़ा जाता !

सह ना पाए मिथ्या कण भर
सच के धागों का तन उसका,  
मुरझायेगा भेद देख कर
सदा एक रस है मन जिसका !

हल्का सा भी धुआं उठा तो
दूर अतल में छिप जायेगा,  
रेखा अल्प कालिमा की भी
कैसे उसे झेल पायेगा !

कोमल श्यामल अति शोभन जो
भीतर एक स्वप्न पलता है,
बड़े जतन से पाला जिसको
ख्वाब दीप बन कर जलता है !

गुरुवार, मार्च 15

किसने खिलकर किये इशारे



किसने खिलकर किये इशारे


पी पी कह कर कौन पुकारे
किसे खोजते नयन तुम्हारे,
अंतर सरस तान बन गूँजा
किसने खिलकर किये इशारे !

हल्का-हल्का सा स्पंदन है
सूक्ष्म, गहन उर का कम्पन है,
जाने कौन उसे पढ़ लेता
चुप हो कहती जो धड़कन है !

मधुर रागिनी सा जो बिखरा
रस में पगा स्वाद मिश्री का,
तृप्त करे फिर तृषा जगाए
जादूगर वह कौन अनोखा !

एक तिलस्म राज इक गहरा
किसके चाहे खुलता जाता,
साया बनकर साथ सदा है
कौन प्रीत का गीत सुनाता !

सिहरन कब सम्बल बन जाती
भटकन कब मंजिल पर लाती,
कौन ख्वाब बन झलक दिखाता
किसकी चाह पूर्णता लाती !


मंगलवार, मार्च 13

उम्मीद



उम्मीद 



उम्मीद है कि दुनिया एक दिन यही कहेगी 
इंसानियत सिखाये भारत की परम भूमि 

कश्मीर के जवां फिर भारत के साथ होंगे 
जन्नत बनेगा फिर से अमनोहवा बहेगी 

दिलों में बनी जो दूरी घाव की पीर ताजी
पुरनम हुईं जो आँखें फिर झूम के हँसेंगी  

केसर गुलाब महकें अंतर में ख्वाब दहकें  
जिनके उजाले में फिर धरती हरी खिलेगी 

उम्मीद की शमा को दिल में जलाये रखना 
कितन घना तमस हो सुबह नव किरण उगेगी 

कश्मीरियों के दिल में उतना ही चैन होगा 
जितनी हमारे दिल से धारा उधर बहेगी 

बुधवार, मार्च 7

महिला दिवस पर शुभकामनायें




महिला दिवस पर



कभी जो भ्रमण करती थी सावित्री की तरह
 देश-देश योग्य वर की तलाश में
गार्गी की तरह गढ़ीं वेद ऋचाएं
विवश कर दी गयी अवगुंठन में रहने को 
उड़ा करती थी जो खुले युद्ध क्षेत्र में
  शेरनी की तरह रथ की लगाम थामे
अबला की उपाधि दे चुप करा दी गयीं
अन्याय सहते हुए जब
पानी सिर से ऊपर आ गया तो
कमर कस ली उसने
और सुसजग है आज की मानुषी अति
अपने उन खोये मूल अधिकारों के प्रति
षड्यंत्र रचा गया अनजान रखने का युगों से
जिसे अपनी ही क्षमताओं से
निकल पड़ी है अप्रतिम भविष्य की ओर...
 इस बार उसके कदम आगे ही बढ़ेंगे..
हर बाधा फलांग सीढ़ी चढ़ेंगे !