गहराई में जा सागर के
हँसना व हँसाना यारों
अपना शौक पुराना है,
आज जिसे देखा खिलते
कल उसको मुरझाना है !
जाने कब से दिल-दुनिया
ख़ुद के दुश्मन बने हुए,
बड़े जतन कर के इनको
तम से हमें जगाना है !
बादल नहीं थके अब भी
कब से पानी टपक रहा ,
आसमान की चादर में
हर सुराख़ भरवाना है !
सूख गये पोखर-सरवर
दिल धरती का अब भी नम,
उसके आँचल से लग फिर
जग की प्यास बुझाना है !
दर्द छुपा सुख के पीछे
संग फूल के ज्यों कंटक,
किसी तरह हर बंदे को
माया से भरमाना है !
ऊपर ही सोना भीतर
पीतल, पर उलटा भी है
गहराई में सागर के
सच्चा मोती पाना है !